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"सरफ़रोशी की तमन्ना / बिस्मिल अज़ीमाबादी" के अवतरणों में अंतर

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देखता हूँ मैं जिसे वो चुप तेरी महफ़िल में है
 
देखता हूँ मैं जिसे वो चुप तेरी महफ़िल में है
  
शहीद-ए-मुल्क-ओ-मिल्लत मैं तेरे ऊपर निसार,
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शहीद-ए-मुल्क-ओ-मिल्लत मैं तेरे ऊपर निसार,
 
अब तेरी हिम्मत का चरचा गैर की महफ़िल में है
 
अब तेरी हिम्मत का चरचा गैर की महफ़िल में है
  

13:58, 30 मई 2017 का अवतरण

अक्सर लोग इसे राम प्रसाद बिस्मिल जी की रचना बताते हैं लेकिन वास्तव में ये अज़ीमाबाद (अब पटना) के मशहूर शायर बिस्मिल अज़ीमाबादी की हैं और रामप्रसाद बिस्मिल ने उनका शे'र फांसी के फंदे पर झूलने के समय कहा था। चूँकि अधिकाँश लोग इसे राम प्रसाद बिस्मिल की रचना मानते है इसलिए इस रचना को बिस्मिल के पन्ने पर भी रखा गया है। -- कविता कोश टीम

सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
देखना है ज़ोर कितना बाज़ु-ए-कातिल में है

करता नहीं क्यूँ दूसरा कुछ बातचीत,
देखता हूँ मैं जिसे वो चुप तेरी महफ़िल में है

ऐ शहीद-ए-मुल्क-ओ-मिल्लत मैं तेरे ऊपर निसार,
अब तेरी हिम्मत का चरचा गैर की महफ़िल में है

वक्त आने दे बता देंगे तुझे ऐ आसमान,
हम अभी से क्या बतायें क्या हमारे दिल में है

खैंच कर लायी है सब को कत्ल होने की उम्मीद,
आशिकों का आज जमघट कूच-ए-कातिल में है