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निराकार आंधी ई
दीन्हौ ओ रूप
लखीजै जकौ धोरौ।
आंधी नीं
आ आतमा है
आज अठै
कालै कठै
बसेरौ नवी काया
नवो रूप
बेसकां क्यूँ
थूं रूंखड़ा!