भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"अपने से दूर तुझको किधर ढूंढ रहा हूँ / आनंद कुमार द्विवेदी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= आनंद कुमार द्विवेदी }} {{KKCatGhazal}} <poem> मं...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
04:32, 17 जून 2017 का अवतरण
मंज़िल के बाद कौन सफ़र ढूंढ रहा हूँ
अपने से दूर तुझको किधर ढूंढ रहा हूँ
कहने को शहर छोड़कर सहरा में आ गया
पर एक छाँवदार शज़र ढूंढ रहा हूँ
जिसकी नज़र के सामने दुनिया फ़िजूल थी
हर शै में वही एक नज़र ढूंढ रहा हूँ
लाचारियों का हाल तो देखो कि इन दिनों
मैं दुश्मनों में अपनी गुजर ढूंढ रहा हूँ
तालीम हमने पैसे कमाने की दी उन्हें
नाहक नयी पीढ़ी में ग़दर ढूंढ रहा हूँ
जैसे शहर में ढूंढें कोई गाँव वाला घर
मैं मुल्क में गाँधी का असर ढूंढ रहा हूँ
यूँ गुम हुआ कि सारे जहाँ में नहीं मिला
‘आनंद’ को अब तेरे ही दर ढूंढ रहा हूँ