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"सबक / आनंद कुमार द्विवेदी" के अवतरणों में अंतर
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गर्दन दुखने लगती है
आकाश को निहारते ... मगर
नहीं टूटते तारे अब
कोई और जतन बताओ
कि एक आखिरी मुराद माँगनी है मुझे
टूटने वाली चीजें भी
कुछ न कुछ दे ही जाती हैं
मसलन
एक सबक !