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"बचे हुए ख़्वाब / आनंद कुमार द्विवेदी" के अवतरणों में अंतर

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22:08, 18 जून 2017 के समय का अवतरण

भूल गया हूँ अब
कैसे देखा था पहली बार तुम्हें
और क्या देखा था
क्या कहा था तुमसे और क्यों कहा था
बहुत जोर डालने पर भी याद नहीं आता
कि देखे हुए अनगिनत ख्वाबों में से
कितने टूटे
कितने बचे
मोटा मोटा अनुमान है कि वो सब टूट गए
जिन्हें
हकीकत होना था
बच वो रहे हैं
जिन्हें
सिर्फ ख्वाब रहना था ...!