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माँ / श्रीकृष्ण सरल

333 bytes removed, 09:45, 26 जून 2017
{{KKRachna
|रचनाकार=श्रीकृष्ण सरल
}}{{KKCatKavita}}{{KKAnthologyMaa}}<poem>इस एक शब्द 'माँ' में है मंत्र–शक्ति भारीयह मंत्र–शक्ति सबको फलदायी होती है,आशीष–सुधा माँ देती अपने बच्चों कोवह स्वयं झेलती दुःख, विषपायी होती है।
इस एक शब्द 'माँ' में से कोमल है मंत्र–शक्ति भारी<br>शब्द–कोश में शब्द नहींयह मंत्र–शक्ति सबको फलदायी होती माँ की ममता से बड़ी न कोई ममता है,<br>आशीष–सुधा माँ देती अपनो बच्चों को<br>उपमान और उपमाएँ सबकी मिल सकतींवह स्वयं झेलती दुःख, विषपायी होती लेकिन दुनिया में माँ की कहीं न समता है।<br><br>
यह छोटा–सा 'माँ से कोमल है शब्द–कोश में ' शब्द नहीं<br>, सिन्धु क्षमताओं कामाँ की ममता तप–त्याग–स्नेह से बड़ी न कोई ममता रहता सदा लबालब है,<br>उपमान और उपमाएँ सबकी मिल सकतीं<br>लेकिन दुनिया में खारा सागर, माँ की कहीं न समता क्या कर पाएमाँ की महानता से महान कोई कब है।<br><br>
यह छोटा–सा 'माँ' शब्द, सिन्धु क्षमताओं का<br>हम लोग जिसे ममता कहकर पुकारते हैंतप–त्याग–स्नेह से रहता सदा लबालब बौनी है,<br>खारा सागर, वह भी माँ की समता क्या कर पाए<br>ममता के सम्मुख,हम लोग जिसे क्षमता कहकर पुकारते हैंबौनी है वह भी माँ की महानता से महान कोई कब है।<br><br>ममता के सम्मुख।
हम लोग जिसे ममता कहकर पुकारते हैं<br>बौनी है वह भी माँ की ममता महानता से, महानता बड़ी नहींमाँ के सम्मुखतप से, होता कोई तप बड़ा नहीं,<br>हम लोग जिसे क्षमता कहकर पुकारते हैं<br>बौनी है वह साकार त्याग भी माँ की ममता के सम्मुख।<br><br>आगे बौना हैमाँ के सम्मुख हो सकता कोई खड़ा नहीं।
माँ की महानता से, महानता बड़ी नहीं<br>हैं त्याग–आग अनुराग मातृ–उर में पलतेमाँ के तप से, होता कोई तप बड़ा नहींवर्षा–निदाघ आँखों में पलते आए हैं,<br>साकार त्याग भी माँ के आगे बौना है<br>भावना और कर्त्तव्य रहे ताने–बानेमाँ के सम्मुख हो सकता कोई खड़ा नहीं।<br><br>चरमोत्कर्ष ममता – क्षमता ने पाए हैं।
हैं त्याग–आग अनुराग मातृ–उर में पलते<br>बेटे के तन का रोयाँ भी दुखता देखेवर्षा–निदाघ आँखों में पलते आए हैंमाता आकुल–व्याकुल हो जाया करती है,<br>भावना और कर्त्तव्य रहे ताने–बाने<br>जब पुत्र–दान की माँग धरा–माता करतीचरमोत्कर्ष ममता – क्षमता ने पाए हैं।<br><br>इस कठिन कसौटी पर माँ खरी उतरती है।
बेटे के तन का रोयाँ वह धातु अलग, जिससे माँ निर्मित होती हैउसको कैसा भी दुखता देखे<br>ताप नहीं पिघला सकता,माता आकुल–व्याकुल हल्के से हल्का ताप पुत्र – पुत्री को हो जाया करती है,<br>जब पुत्र–दान की माँग धरा–माता करती<br>इस कठिन कसौटी पर माँ खरी उतरती है।<br><br>के मन के हिम को वह ताप गला सकता|
वह धातु अलग, जिससे माँ निर्मित होती है<br>उसको कैसा दुनिया में जितने भी ताप नहीं पिघला सकतासागर,<br>सब उथले हैंहल्के माता का उर प्रत्येक सिन्धु से हल्का ताप पुत्र – पुत्री को हो<br>गहरा है,कोई पर्वत, माँ के मन के हिम को वह ताप गला सकताक्या छू पाएमाँ के सम्मुख कोई उपमान न ठहरा है|<br><br>
दुनिया इतनी महानता भारत की माताओं में जितने अवतारों को भी सागर, सब उथले अपनी गोद खिलाती हैं<br>माता का उर प्रत्येक सिन्धु से गहरा है,<br>हो राम – कृष्ण गौतम या कोई पर्वतमहावीरमाताएँ हैं, माँ के मन को क्या छू पाए<br>माँ के सम्मुख कोई उपमान न ठहरा है|<br><br>जो उनको पाठ पढ़ाती हैं।
इतनी महानता भारत की माताओं में<br>अवतारों कोई जीजा माँ किसी शिवा को भी अपनी गोद खिलाती हैंशेर बनाजब समर–भूमि में सह–आशीष पठाती है,<br>हो राम तो बड़े कृष्ण गौतम या कोई महावीर<br>बड़े योद्धा भी भाग खड़े होतेमाताएँ हैं, जो उनको पाठ पढ़ाती हैं।<br><br>अरि के खेमों में काई–सी फट जाती है।
कोई जीजा माँ जगरानी किसी शिवा चन्द्रशेखर को शेर बना<br>जब समर–भूमि में सह–आशीष पठाती निज दूध पिला जीवन के पाठ पढ़ाती है,<br>तो बड़े – बड़े योद्धा भी भाग खड़े होते<br>वह दूध खून का फव्वारा बन जाता हैअरि के खेमों में काई–सी फट जाती है।<br><br>वह मौत, मौत को भी झकझोर रुलाती है|
कोई जगरानी किसी चन्द्रशेखर विद्या माँ, भगत सिंह से बेटे को जब<br>निज दूध पिला जीवन के पाठ पढ़ाती घोल–घोल घुट्टी में क्रान्ति पिलाती है,<br>वह दूध खून का फव्वारा बन जाता है<br>तो उसका शैशव बन्दूकें बोने लगतावह मौत, मौत बरजोर जवानी फाँसी को भी झकझोर रुलाती है|<br><br>ललचाती है।
जब प्रभावती कोई विद्या माँ, भगत सिंह सुभाष से बेटे को<br>जब घोल–घोल घुट्टी में क्रान्ति पिलाती भारत–माता की व्यथा–कथा बतलाती है,<br>तो उसका शैशव बन्दूकें बोने लगता<br>हर साँस और हर धड़कन उस विद्रोही कीबरजोर जवानी फाँसी को ललचाती धरती की आजादी की बलि चढ़ जाती है। <br><br>
जब प्रभावती कोई सुभाष से चाफेकर – माता तीन – तीन बेटे को<br>भारत–माता की व्यथा–कथा बतलाती हैभारत माता के ऊपर न्योछावर करती,<br>हर साँस और हर धड़कन उस विद्रोही की<br>कहती, चौथा होता तो वह भी दे देतीधरती की आजादी की बलि चढ़ जाती है।<br><br>आँसू न एक गिरता, वह आह नहीं भरती।
कोई चाफेकर – माता तीन – तीन बेटे<br>तप और त्याग साकार देखना यदि अभीष्टतो देखे कोई भारत माता के ऊपर न्योछावर करतीकी माताओं को,<br>कहती, चौथा होता तो वह कलियों में किसलय में भी दे देती<br>लपटें होती हैंआँसू न एक गिरता, वह आह नहीं भरती।<br><br>तो देखे कोई भारत की ललनाओं को।
तप और त्याग साकार देखना यदि अभीष्ट<br>तो देखे कोई भारत की कर्त्तव्य हमारा, हम माताओं कोपूजेंआशीष कवच पाकर उनका, निर्भय विचरें,<br>कलियों में किसलय में भी लपटें होती हैं<br>हम लाज रखें उसकी, जो हमने दूध पियातो देखे कोई भारत की ललनाओं को।<br><br>माँ और बड़ी माँ का हम ऊँचा नाम करें।
कर्त्तव्य हमारामाता माता तो है ही, हम माताओं को पूजें<br>गुरु भी होती हैआशीष कवच पाकर उनकामाता ही पहले–पहले सबक सिखाती है, निर्भय विचरें,<br>हम लाज रखें उसकी, जो हमने दूध पिया<br>माँ घुट्टी में ही जीवन घोल पिला देतीमाँ और बड़ी माँ का हम ऊँचा नाम करें।<br><br>ही हमको जीवन की राह दिखाती है।
माता माता तो है ही, गुरु भी होती है<br>माता ही पहले–पहले सबक सिखाती है,<br>माँ घुट्टी में ही जीवन घोल पिला देती<br>माँ ही हमको जीवन की राह दिखाती है।<br><br> हम जननी की, भारत–जननी की जय बोलें<br>निज जीवन देकर उनके कर्ज चुकाएँ हम<br>जो सीख मिली है, उसका पालन करने को<br>निज शीश कटा दें, उनको नहीं झुकाएँ हम।<br><br/poem>
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