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{{KKRachna
|रचनाकार=श्रीकृष्ण सरल
}}{{KKCatKavita}}{{KKAnthologyMaa}}<poem>इस एक शब्द 'माँ' में है मंत्र–शक्ति भारीयह मंत्र–शक्ति सबको फलदायी होती है,आशीष–सुधा माँ देती अपने बच्चों कोवह स्वयं झेलती दुःख, विषपायी होती है।
यह छोटा–सा 'माँ से कोमल है शब्द–कोश में ' शब्द नहीं<br>, सिन्धु क्षमताओं कामाँ की ममता तप–त्याग–स्नेह से बड़ी न कोई ममता रहता सदा लबालब है,<br>उपमान और उपमाएँ सबकी मिल सकतीं<br>लेकिन दुनिया में खारा सागर, माँ की कहीं न समता क्या कर पाएमाँ की महानता से महान कोई कब है।<br><br>
कोई जीजा माँ जगरानी किसी शिवा चन्द्रशेखर को शेर बना<br>जब समर–भूमि में सह–आशीष पठाती निज दूध पिला जीवन के पाठ पढ़ाती है,<br>तो बड़े – बड़े योद्धा भी भाग खड़े होते<br>वह दूध खून का फव्वारा बन जाता हैअरि के खेमों में काई–सी फट जाती है।<br><br>वह मौत, मौत को भी झकझोर रुलाती है|
कोई जगरानी किसी चन्द्रशेखर विद्या माँ, भगत सिंह से बेटे को जब<br>निज दूध पिला जीवन के पाठ पढ़ाती घोल–घोल घुट्टी में क्रान्ति पिलाती है,<br>वह दूध खून का फव्वारा बन जाता है<br>तो उसका शैशव बन्दूकें बोने लगतावह मौत, मौत बरजोर जवानी फाँसी को भी झकझोर रुलाती है|<br><br>ललचाती है।
जब प्रभावती कोई विद्या माँ, भगत सिंह सुभाष से बेटे को<br>जब घोल–घोल घुट्टी में क्रान्ति पिलाती भारत–माता की व्यथा–कथा बतलाती है,<br>तो उसका शैशव बन्दूकें बोने लगता<br>हर साँस और हर धड़कन उस विद्रोही कीबरजोर जवानी फाँसी को ललचाती धरती की आजादी की बलि चढ़ जाती है। <br><br>