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"माँ / नीलेश रघुवंशी" के अवतरणों में अंतर
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उम्र के इस पड़ाव पर भी घबराहट है | उम्र के इस पड़ाव पर भी घबराहट है | ||
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− | झूठमूठ ही बहलाता है हमें ? | + |
15:48, 26 जून 2017 के समय का अवतरण
माँ बेसाख़्ता आ जाती है तेरी याद
दिखती है जब कोई औरत।
घबराई हुई-सी प्लेटफॉम पर
हाथों में डलिया लिए
आँचल से ढँके अपना सर
माँ मुझे तेरी याद आ जाती है।
मेरी माँ की तरह
ओ स्त्री!
उम्र के इस पड़ाव पर भी घबराहट है
क्यों, आख़िर क्यों?
क्या पक्षियों का कलरव
झूठमूठ ही बहलाता है हमें?