भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"धरती माँ के बच्चे / रमेश कौशिक" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) |
Sharda suman (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 31: | पंक्ति 31: | ||
दुनिया के आँगन में | दुनिया के आँगन में | ||
ख़ुशबू भर जाने दो। | ख़ुशबू भर जाने दो। | ||
− | <poem> | + | </poem> |
16:21, 26 जून 2017 के समय का अवतरण
ये जो देख रहो हो
तुम फूलों के गुच्छे
ये भी हैं तुम जैसे
धरती माँ के बच्चे।
इन्हें देखकर मधुर
गीत, पंछी गाते हैं
थकी हुई आँखों में
सपने तिर जाते हैं।
उजली रातों में ये
लगते नभ के तारे
दिन में इंद्रधनुष-से
मोहक प्यारे-प्यारे।
जब तक ये हैं,तब तक
भू पर सुंदरता है
भोली-भाली परियों
की-सी कोमलता है।
पौधों की डालों पर
इनको मुसकाने दो,
दुनिया के आँगन में
ख़ुशबू भर जाने दो।