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"माँ, मुझे चांद ला दो / तारा सिंह" के अवतरणों में अंतर

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आसमां से चाँद उतार लाई थी
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और मुझे अपने आलिंगन में भरकर
:और         मुझे           अपने आलिंगन में भरकर
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माया की प्रतिमा-सी, असीमता का परिचय दी थी
:माया की प्रतिमा-सी, असीमता का परिचय दी थी
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चाँद को पाकर मैं बहुत खुश हुआ था
 
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इतनी बलशाली तो दिन- रात, बक- बक
:सोचता था, मेरी माँ कितनी बलशाली है
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जब की चाँद को पाने की जिद्द
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:जब     की     चाँद   को       पाने     की   जिद्द
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:मैंने     उनसे     भी   कई   बार     किया     था
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18:11, 26 जून 2017 के समय का अवतरण

अनायास आज भी यह मन- पंछी
उड़कर वहाँ पहुँच जाता है
जहाँ कभी इच्छा और समाधान
दोनो का अद्भुत आलाप हुआ था
माँ के आँचल को पकड़कर
आँगन बीच खड़ी कर
आसमां की ओर उँगली दिखाकर
चाँद को पाने की जिद्द किया था
तब माँ ने बहुत समझाया था
गोद में उठाकर, सीने से लगाकर
बहलाने का अथक प्रयास किया था
पर शिशुतावश, मैं माननेवाला कहाँ था
तब माँ पानी से भरे थाली में
आँगन बीच मेरे लिए
आसमां से चाँद उतार लाई थी
और मुझे अपने आलिंगन में भरकर
माया की प्रतिमा-सी, असीमता का परिचय दी थी
चाँद को पाकर मैं बहुत खुश हुआ था
सोचता था, मेरी माँ कितनी बलशाली है
इतनी बलशाली तो दिन- रात, बक- बक
करने वाली, दादी माँ भी नहीं है
वरना चाँद को पकड़कर, दादी माँ नहीं दी होती
पानी और थाली, घर में पहले भी थी
जब की चाँद को पाने की जिद्द
मैंने उनसे भी कई बार किया था