भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"पाणी / मोहन पुरी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मोहन पुरी |अनुवादक= |संग्रह=थार-सप...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
14:07, 27 जून 2017 के समय का अवतरण
जुगां-जुगां सूं
हथेळियां री ओक बिचाळै
मिनख पी रियो है इमरत
अर मिटाय रियो है आपणी तिरस...।
सिरजण रा रूंख बोय नै
करै है संस्कृति रो बधापो...।
पण! लारलै कई दिनां सूं
पाणी सिर माथै गुजर रियो है
मानखो ईब पाणी री राड़ कर रियो है
अर पाणी बी...
हो रियो है त्यार
मानखां री भीड़ नै निगळबा खातर...।