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"बगत : पांच / ओम पुरोहित ‘कागद’" के अवतरणों में अंतर
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भाजतै बगत नै
पकड़ण सारू
मार्या हांफळा
पण
हाथ नीं आयो
भाजतो बगत।
आज
पड़तख नीं
लारलो बगत
निकळग्यो दड़ाछंट
पण
बगत सूं
लारै ऊभ्या
करड़ावण पाळता
कथां मुळकता आपां
म्हां दाईं आगै रैवो
बगत सूं दो पांवडा!