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21:49, 28 जून 2017 के समय का अवतरण
क्रोशिया चलाते उसका हाथ
नाचता है एक लय में
ऊँगलियों में लपेटा ऊन
सरकता जाता है
सरसराते हुए
ऊन का गोला घूमता है लट्टू की तरह
बदलता जाता है
खूबसूरत मफलर में
बुनते हुए बार- बार मुस्कुराती है
ठहर-ठहर गिन लेती है फन्दे
जिसे पहली बार डालते हुए
हुई थी लाल
ना जाने कितने प्रेम-पत्र सहेजे क्रोशिया
चलता जाता
जैसे बाच लेगा हर आँख की परिधि में कैद
गुलाबी प्रेम-पत्र...
अब लड़कियाँ मफलर नहीं बुनतीं
क्रोशिया बचा है कुछ प्रौढ़ हाथों में
जिससे बार-बार बुनती हैं
मांग कर सबसे ऊन
कहतीं
कुण्ठा कम होता है सिरजने से
दबा लेती है कुछ हर्फ़
प्रेम की भाषा का मौन निवेदन टांकती हैं
बार-बार क्रोशिए से।