भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"कथा मेरी / रामनरेश पाठक" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामनरेश पाठक |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
|||
पंक्ति 3: | पंक्ति 3: | ||
|रचनाकार=रामनरेश पाठक | |रचनाकार=रामनरेश पाठक | ||
|अनुवादक= | |अनुवादक= | ||
− | |संग्रह= | + | |संग्रह=अपूर्वा / रामनरेश पाठक |
}} | }} | ||
{{KKCatKavita}} | {{KKCatKavita}} |
13:59, 4 जुलाई 2017 के समय का अवतरण
कथा मेरी अधूरी ही रही,
पूरी नहीं होगी.
व्यथा मेरी असुनी ही रही,
सुनी नहीं होगी.
मीत के संग-संग तिरोहित
प्राण होते.
धरा के नभ में विलोपित
गान होते.
सांध्य से कुछ दूर की
दूरी नहीं होगी.
शिला का मदुर मधु-संगीत
मजबूरी नहीं होगी.
कथा मेरी अधूरी ही रही,
पूरी नहीं होगी.
चिता मेरे सपन की जल चुकी,
दूरी नहीं होगी.