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"कथा मेरी / रामनरेश पाठक" के अवतरणों में अंतर
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13:59, 4 जुलाई 2017 के समय का अवतरण
कथा मेरी अधूरी ही रही,
पूरी नहीं होगी.
व्यथा मेरी असुनी ही रही,
सुनी नहीं होगी.
मीत के संग-संग तिरोहित 
प्राण होते. 
धरा के नभ में विलोपित 
गान होते.
सांध्य से कुछ दूर की 
दूरी नहीं होगी.
शिला का मदुर मधु-संगीत 
मजबूरी नहीं होगी.
कथा मेरी अधूरी ही रही,
पूरी नहीं होगी.
चिता मेरे सपन की जल चुकी,
दूरी नहीं होगी.
 
	
	

