भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"ढूँढ रहा खोया अनुराग घर से बाहर तक / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=डी. एम. मिश्र |संग्रह=रोशनी का कारव...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
(कोई अंतर नहीं)

15:05, 8 जुलाई 2017 का अवतरण

ढूँढ रहा खोया अनुराग घर से बाहर तक।
अपनी डफली - अपना राग घर से बाहर तक।

बेच दिया मुस्कान क्षणि खुशियों की ख़ातिर,
लगी है बाजा़रों में आग घर से बाहर तक।

देख पलटकर मगर कभी अपना भी दामन,
खोज रहा औरों में दाग घर से बाहर तक।

तब जंगल में मंगल था अब घर भी जंगल,
घूम रहे हैं काले नाग घर से बाहर तक।

सारी रात सितारों ने रखवाली की है,
अब तेरी बारी है जागघर से बाहर तक।