भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"दो इंछावां / मदन गोपाल लढ़ा" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मदन गोपाल लढ़ा |अनुवादक= |संग्रह=च...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

17:09, 9 जुलाई 2017 के समय का अवतरण

कैकेयी रै वचनां सूं
बंध्योड़ै
राजा दशरथ री
राम सूं
दो इंछावां-
भरत नैं राज
अर चवदै बरसां रो देसूंटो।

मा री मनगत सूं
बंध्योड़ै
बाबै री पण
मोभी बेटै सूं
फगत दो इंछावां-
घर छोड़'र
मती जा अळघो
अर अबै तो संभाळ
घर रो भार।