भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"नहर री मुळक / मदन गोपाल लढ़ा" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मदन गोपाल लढ़ा |अनुवादक= |संग्रह=च...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
17:12, 9 जुलाई 2017 के समय का अवतरण
फसलां भेळी
मुळकै नहर
बायरै मारफत
बा करै बंतळ
ओळखै-
जमानै री आस सूं
झूमतै जग-जीवण रो हरख।
पाणी में पळकै
जूण रा रंग।