भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"आत्मा नीलाम करके कुछ भी पा लो / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=डी. एम. मिश्र |संग्रह=रोशनी का कारव...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
16:30, 13 जुलाई 2017 का अवतरण
आत्मा नीलाम करके कुछ भी पा लो।
रात वाला काम करके कुछ भी पा लो।
गर तुम्हारे नाम से कुछ हो न हासिल,
तो हमें बदनाम करके कुछ भी पा लो।
जाल में फँस जाय गर मोटा शिकार,
तो उसे नाकाम करके कुछ भी पा लो।
मर गये माँ - बाप बेचारे तडपकर,
आज चारों धाम करके कुछ भी पा लो।
और यदि सरकार माँगों को न माने,
तो सड़क को जाम करके कुछ भी पा लो।
किन्तु ये इतिहास केवल जानता है,
एक अच्छा काम करके कुछ भी पा लो।