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"धूल मिट्टी की चमक कागज पे रखकर देखता है / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर
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16:35, 13 जुलाई 2017 का अवतरण
धूल मिट्टी की चमक कागज पे रखकर देखता है।
गॅाव मेरा, शहर से दूरबीन लेकर देखता है।
स्वाद सूखी रोटियों का, भात का होता है क्या,
चैम्बर में बैठकर वो जूस पीकर देखता है।
वो बड़ा नेता है उससे आप बच करके रहें,
वो दरो -दीवार तक कुर्सी को लेकर देखता है।
चार छै दस के सिवा कौन उसको मानता,
किन्तु वो ख़ुद को ग़लतफ़हमी में रखकर देखता है।
गाँव का वो आदमी बेशक अगूँठा छाप है, पर,
आपके सारे घोटाले वो निरक्षर देखता है।
देवता बेशक़ नहीं, पर वो बड़ा इन्सान है,
हर किसी का दर्द जो अपना बनाकर देखता है।