भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"ख़ैर मनाओ झोपड़ियों में बच्चे ज़्यादा हैं / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=डी. एम. मिश्र |संग्रह=रोशनी का कारव...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
(कोई अंतर नहीं)

16:36, 13 जुलाई 2017 का अवतरण

ख़ैर मनाओ झोपड़ियों में बच्चे ज़्यादा हैं।
भरे ताल, वीरान महल से अच्छे ज़्यादा हैं।

गॅावों में सादगी और ताजी हरियाली है,
शहर में बस बासी हुस्नों के नखरे ज़्यादा हैं।

तेरी फुलवारी के फूल तो बहुत निराले हैं,
छोटा -सा जो जीवन अपना जीते ज़्यादा हैं।

बड़ा आचरण, बड़ा ज्ञान सब पीछे रह जाता,
बड़ा वही है जिसके पास में पैसे ज़्यादा हैं।

मेरी ग़ज़लों में मेरी दुनिया की बातें हैं,
जिसमें नये - नये रंगों के सपने ज़्यादा हैं।