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|रचनाकार=भवप्रीतानन्द ओझा
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|रचनाकार=खुशीलाल मंजर
 
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|संग्रह=अंगिका के प्रतिनिधि प्रकृति कविता / गंगा प्रसाद राव
 
|संग्रह=अंगिका के प्रतिनिधि प्रकृति कविता / गंगा प्रसाद राव

13:48, 14 जुलाई 2017 के समय का अवतरण

देखॅ
है वहेॅ जग्घॅ छेकै
जेकरा हम्मंे
कहियो भूलेॅ नै पारेॅ छी
हौ बैसाखॅ रॅ ठहाका ईंजोरिया
आरो हौ ईंजोयिा में
पछिया हवा रॅ गुदगुदी से भरलॅ मजाक
तोरा केनाकेॅ विश्वास दिलैय्यौं
कि आय सब फीका लागै छै
फीका लागै छै
जिनगी केॅ एक लहास समझी केॅ ढोना।
अफसोस कि तोहें साथें नै छॅ
होना केॅ तोहरॅ साथ रहना
हमरॅ जिनगी के
पहलॅ आरो आखिरी अरमान छेलै
तोहरा शायद याद नै होतौं
कि हौ आमॅ के गाछ
जहाँ तोहें आपनॅ सखी रॅ साथ
अट्ठागोटी खेलै छेली
आय कतेॅ उदास लागै छै
लागै छै
तोरा गेला के बाद
यहाँ से सब कुछ विदा होय गेलै
बची गेलॅ छै खाली
तोरॅ याद
आरो यादॅ के बीहूड़ बनॅ में
हमरॅ जिनगी के
भटकलॅ होलॅ किस्सा