भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"दुश्मने जाँ सामने हो तो ख़ता अच्छी लगे / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=डी. एम. मिश्र |संग्रह=रोशनी का कारव...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
15:50, 18 जुलाई 2017 का अवतरण
दुश्मने जाँ सामने हो तो ख़ता अच्छी लगे।
खु़द वो अपने हाथ से दे तो सजा अच्छी लगे।
इस तरह वो दिल के साँचें में हमारे ढल गयी,
जब हँसे अच्छी लगे, जब हो खफ़ा अच्छी लगे।
गेसुओं की छाँव हो तो हर बला मंजूर है,
बिजलियाँ अच्छी लगें,काली घटा अच्छी लगे।
वो हमारे साथ है तो फिक्र फिर किस बात की,
गर्मियाँ अच्छी लगें, बादे-सबा अच्छी लगे।