भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"नेपाली हाम्रो श्रम र सीप / मुकुन्दशरण उपाध्याय" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Sirjanbindu (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मुकुन्दशरण उपाध्याय |अनुवादक= |सं...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
Sirjanbindu (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 5: | पंक्ति 5: | ||
|संग्रह= | |संग्रह= | ||
}} | }} | ||
+ | {{KKCatKavita}} | ||
{{KKCatNepaliRachna}} | {{KKCatNepaliRachna}} | ||
<poem> | <poem> |
07:56, 23 जुलाई 2017 के समय का अवतरण
नेपाल बाँचे नेपाली भन्ने मानिस बाँच्दछ
नेपाली भाषा, साहित्य, कला, संस्कृति साँच्दछ
एसैले आऊ नेपाललाई बलियो बनाऊँ
नेपाली हाम्रो श्रम र सीप स्वदेश मै लगाऊँ
नेपाल भोकै रहन्छ सीतो एउटैले नखाए
नेपाल नाँगै रहन्छ टालो एउटैले नलाए
एसैले आऊ गास र बास सबैलाई पुर्याऊँ
नेपाली हाम्रो श्रम र सीप स्वदेश मै लगाऊँ
पहाड भन्छ पसीना पाए मँ स्वर्ग भुलाउँथेँ
मधेश भन्छ अक्किल पाए मँ सुन झुलाउँथेँ
के छ र गाह्रो होष्टे मा हैँसे सबैले मिलाए
सबैले चोखो श्रम र सीप स्वदेश मै लगाए
प्रकृति ले नै सिंगारे जस्ता पहाड मैदान
गौरवशाली बुद्ध र पृथ्वी पूर्वज महान
सुन्दर माथी सुन्दर थपौं गौरव बढाऊँ
नेपाली हाम्रो श्रम र सीप स्वदेशमै लगाऊँ