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"रस्मे वफा के वास्ते हर सुख भुला दिया / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर

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दुनिया नहीं रुकी है बेशक़ किसी के बाद।
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रस्मे वफा़ के वास्ते हर सुख भुला दिया।
मेरा हुआ ये हाल है लेकिन उसी के बाद।
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मैंने तो अपना एक-एक पल लगा दिया।
  
जब वक्त हाथ में था तो थामा न तेरा हाथ,
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इतनी भी इनायत तो मगर कम नहीं है दोस्त,
अब प्यार आ रहा है मगर बेबसी के बाद।
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मेरी जो ख़ता थी मुझे पहले बता दिया।
  
मैंने विदा किया था तुझे ग़ैर का तरह,
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फिर आखिरी समय पे क्या शिकवा गिला करें,
कैसे नज़र मिलाउँगा कल वापसी के बाद।
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अच्छा किया जो तुमने मुझे फिर दगा दिया।
  
आँगन की धूप जा रही है धीरे-धीरे दोस्त,
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इतना दिया है और क्या देती दिवानगी,
अब तो दिखेंगे फूल भी  काले इसी के बाद।
+
चाहत को मेरी उसने इबादत बना दिया।
  
मुझ पर लगा रहे थे जो इल्जा़म कल तलक,
+
पल भर को अपने आँसुओं को रोक कर सनम,
रोने लगे हैं वो  भी मेरी खु़दकुशी के बाद। 
+
देखा तुम्हें जो खुश तो मैने मुस्करा दिया।
 
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14:51, 5 अगस्त 2017 का अवतरण

रस्मे वफा़ के वास्ते हर सुख भुला दिया।
मैंने तो अपना एक-एक पल लगा दिया।

इतनी भी इनायत तो मगर कम नहीं है दोस्त,
मेरी जो ख़ता थी मुझे पहले बता दिया।

फिर आखिरी समय पे क्या शिकवा गिला करें,
अच्छा किया जो तुमने मुझे फिर दगा दिया।

इतना दिया है और क्या देती दिवानगी,
चाहत को मेरी उसने इबादत बना दिया।

पल भर को अपने आँसुओं को रोक कर सनम,
देखा तुम्हें जो खुश तो मैने मुस्करा दिया।