भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"बड़े अज़ीब मकाँ उम्र भी दिखाती है / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=डी. एम. मिश्र |संग्रह=उजाले का सफर /...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
(कोई अंतर नहीं)

15:04, 5 अगस्त 2017 का अवतरण

बड़े अज़ीब मकाँ उम्र भी दिखाती है।
हज़ार आँसुओं से जिंदगी रूलाती है।

खड़े दरख़्त मगर घूमती हुई छाया,
कभी करीब, कभी दूर-दूर जाती है।

कभी सफ़र न रूका साथ के लिए फिर भी,
कभी उम्मीद, कभी दोस्ती रूलाती है।

सुबह से शाम तलक सिर्फ़ खेाजता फिरता,
फिर भी मंजिल मेरी कहीं नज़र न आती है।

कभी गुनाह लगे तो कभी सवाब लगे,
किसी पानी पे नदी कौन ठहर पाती है।