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"और अन्त में / चन्द्रकान्त देवताले" के अवतरणों में अंतर
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− | दिखाई दे रही है कई कई चीजें | + | दिखाई दे रही है कई कई चीजें |
− | देख रहा हूँ बेशुमार चीजों के बीच एक चाकू | + | देख रहा हूँ बेशुमार चीजों के बीच एक चाकू |
− | अदृश्य हो गई अकस्मात तमाम चीजें | + | अदृश्य हो गई अकस्मात तमाम चीजें |
− | दिखाई पड़रहा सिर्फ चमकता चाकू | + | दिखाई पड़रहा सिर्फ चमकता चाकू |
− | देखते के देखते गायब हो गया वह भी | + | देखते के देखते गायब हो गया वह भी |
− | रह गई आँखों में सिर्फ उसकी चमक | + | रह गई आँखों में सिर्फ उसकी चमक |
− | और अब अँधेरे में वह भी नहीं | + | और अब अँधेरे में वह भी नहीं |
− | और यह कैसा चमत्कार | + | और यह कैसा चमत्कार |
− | कि अदृश्य हो गया अँधेरा तक | + | कि अदृश्य हो गया अँधेरा तक |
− | सिर्फ आँखें हैं कुछ नहीं देखती हुई | + | सिर्फ आँखें हैं कुछ नहीं देखती हुई |
− | और अन्त में | + | और अन्त में |
− | कुछ नहीं देखना भी नहीं बचा | + | कुछ नहीं देखना भी नहीं बचा |
− | बेशुमार चीजों से कुछ नहीं तक को | + | बेशुमार चीजों से कुछ नहीं तक को |
− | देखने वाली आँखे भी नहीं बचीं। | + | देखने वाली आँखे भी नहीं बचीं।</poem> |
17:23, 15 अगस्त 2017 के समय का अवतरण
दिखाई दे रही है कई कई चीजें
देख रहा हूँ बेशुमार चीजों के बीच एक चाकू
अदृश्य हो गई अकस्मात तमाम चीजें
दिखाई पड़रहा सिर्फ चमकता चाकू
देखते के देखते गायब हो गया वह भी
रह गई आँखों में सिर्फ उसकी चमक
और अब अँधेरे में वह भी नहीं
और यह कैसा चमत्कार
कि अदृश्य हो गया अँधेरा तक
सिर्फ आँखें हैं कुछ नहीं देखती हुई
और अन्त में
कुछ नहीं देखना भी नहीं बचा
बेशुमार चीजों से कुछ नहीं तक को
देखने वाली आँखे भी नहीं बचीं।