"दुनिया का सबसे ग़रीब आदमी / चन्द्रकान्त देवताले" के अवतरणों में अंतर
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
Sharda suman (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 4: | पंक्ति 4: | ||
|संग्रह= | |संग्रह= | ||
}} | }} | ||
+ | {{KKCatKavita}} | ||
+ | <poem> | ||
+ | दुनिया का सबसे ग़रीब आदमी | ||
+ | दुनिया का सबसे गैब इन्सान | ||
+ | कौन होगा | ||
+ | सोच रहा हूँ उसकी माली हालत के बारे में | ||
+ | नहीं! नहीं !! सोच नहीं | ||
+ | कल्पना कर रहा हूँ | ||
− | + | मुझे चक्कर आने लगे हैं | |
− | + | ग़रीब दुनिया के गंदगी से पते | |
− | + | विशाल दरिद्र मीना बाजार का सर्वे करते हुए | |
− | + | देवियों और सज्जनों | |
− | + | 'चक्कर आने लगे हैं " | |
− | + | यह कविता की पंक्ति नहीं | |
− | मुझे चक्कर आने लगे हैं | + | जीवनकंप है जिससे जूझ रहा इस वक़्त |
− | ग़रीब दुनिया के गंदगी से पते | + | झनझना रही है रीढ़ की हड्डी |
− | विशाल दरिद्र मीना बाजार का सर्वे करते हुए | + | टूट रहे हैं वाक्य |
− | देवियों और सज्जनों | + | शब्दों के मलबे में दबी-फँसी मनुजता को |
− | 'चक्कर आने लगे हैं " | + | बचा नहीं पा रहा |
− | यह कविता की पंक्ति नहीं | + | और वह अभिशप्त, पथरी छायाओं की भीड़ में |
− | जीवनकंप है जिससे जूझ रहा इस वक़्त | + | सबसे पीछे गुमसुम धब्बे-जैसा |
− | झनझना रही है रीढ़ की हड्डी | + | कौन-सा नंबर बताऊँ उसका |
− | टूट रहे हैं वाक्य | + | मुझे तो विश्व जनसँख्या के आकड़े भी |
− | शब्दों के मलबे में दबी-फँसी मनुजता को | + | याद नही आ रहे फ़िलवक़्त |
− | बचा नहीं पा रहा | + | फेहरिस्तसाजों को |
− | और वह अभिशप्त, पथरी छायाओं की भीड़ में | + | दुनिया के कम- से -कम एक लाख एक |
− | सबसे पीछे गुमसुम धब्बे-जैसा | + | सबसे अन्तिम ग़रीबों की |
− | कौन-सा नंबर बताऊँ उसका | + | अपटुडेट सूची बनाना चाहिए |
− | मुझे तो विश्व जनसँख्या के आकड़े भी | + | नाम, उम्र, गांव, मुल्क और उनकी |
− | याद नही आ रहे | + | डूबी-गहरी कुछ नहीं-जैसी संपति के तमाम |
− | फेहरिस्तसाजों को | + | ब्यौरों सहित |
− | दुनिया के कम- से -कम एक लाख एक | + | |
− | सबसे अन्तिम ग़रीबों की | + | |
− | अपटुडेट सूची बनाना चाहिए | + | |
− | नाम, उम्र, गांव, मुल्क और उनकी | + | |
− | डूबी-गहरी कुछ नहीं-जैसी संपति के तमाम | + | |
− | ब्यौरों सहित | + | |
− | हमारे मुल्क के एक कवि के बेटे के पास | + | हमारे मुल्क के एक कवि के बेटे के पास |
− | ग्यारह गाडियाँ जिसमें एक देसी भी | + | ग्यारह गाडियाँ जिसमें एक देसी भी |
− | जिसके सिर्फ़ चारों पहियों के दाम दस लाख | + | जिसके सिर्फ़ चारों पहियों के दाम दस लाख |
− | बताए थे | + | बताए थे उसके आश्वर्य-शानो-शौकत के एक |
− | शोधकर्ता ने | + | शोधकर्ता ने |
− | तब भी विश्व के धन्नासेठों में शायद हिन् | + | तब भी विश्व के धन्नासेठों में शायद हिन् |
− | जगह मिले | + | जगह मिले |
− | और दमड़िबाई को जानता हूँ मैं | + | और दमड़िबाई को जानता हूँ मैं |
− | ग़रीबी के साम्राज्य के विरत रूप का दर्शन | + | ग़रीबी के साम्राज्य के विरत रूप का दर्शन |
− | उसके पास कह नहीं पाऊंगा जुबान गल | + | उसके पास कह नहीं पाऊंगा जुबान गल |
− | जाएगी | + | जाएगी |
− | पर इतना तो कह सकता हूँ वह दुनिया की | + | पर इतना तो कह सकता हूँ वह दुनिया की |
− | सबसे ग़रीब नहीं | + | सबसे ग़रीब नहीं |
− | दुनिया के सत्यापित सबसे धनी बिल गेट्स | + | |
− | का फ़ोटो | + | दुनिया के सत्यापित सबसे धनी बिल गेट्स |
− | अख़बारों के पहले पन्ने पर | + | का फ़ोटो |
− | उसी के बगल में जो होता | + | अख़बारों के पहले पन्ने पर |
− | दुनिया का सबसे ग़रीब का फ़ोटू | + | उसी के बगल में जो होता |
− | तो सूरज टूट कर बरस पड़ता भूमंडलीकरण | + | दुनिया का सबसे ग़रीब का फ़ोटू |
− | की | + | तो सूरज टूट कर बरस पड़ता भूमंडलीकरण |
− | तुलनात्मक हकीकत पर रोशनी डालने के | + | की |
− | लिए | + | तुलनात्मक हकीकत पर रोशनी डालने के |
− | पर कौन खींचकर लाएगा | + | लिए |
− | उस निर्धनतम आदमी का फोटू | + | |
− | सातों समुन्दरों के कंकडों के बीच से | + | पर कौन खींचकर लाएगा |
− | सबसे छोटा-घिसा-पिटा-चपटा कंकड़ | + | उस निर्धनतम आदमी का फोटू |
− | यानी वह जिसे बापू ने अंतिम आदमी कहा था | + | सातों समुन्दरों के कंकडों के बीच से |
− | हैरत होती है | + | सबसे छोटा-घिसा-पिटा-चपटा कंकड़ |
− | क्या सोचकर कहा होगा | + | यानी वह जिसे बापू ने अंतिम आदमी कहा था |
− | उसके आसूँ पोंछने के बारे में | + | हैरत होती है |
− | और वे आसूँ जो अदृश्य सूखने पर भी बहते | + | क्या सोचकर कहा होगा |
− | ही रहते हैं | + | उसके आसूँ पोंछने के बारे में |
− | क्या कोई देख सकेगा उन्हें | + | और वे आसूँ जो अदृश्य सूखने पर भी बहते |
− | और मेरी स्थिति कितनी शर्मनाक | + | ही रहते हैं |
− | न अमीरों की न गरीबों की गिनती में | + | क्या कोई देख सकेगा उन्हें |
− | और मेरी स्थिति कितनी शर्मनाक | + | |
− | न अमीरों की न गरीबों की गिनती में | + | और मेरी स्थिति कितनी शर्मनाक |
− | मैं धोबी का कुत्ता प्रगतिशील | + | न अमीरों की न गरीबों की गिनती में |
− | नीचे नहीं | + | और मेरी स्थिति कितनी शर्मनाक |
− | लगातार संघर्षरत रहे मुक्तिबोध | + | न अमीरों की न गरीबों की गिनती में |
− | पांच रूपये महीने की ट्यूशन से चलकर | + | मैं धोबी का कुत्ता प्रगतिशील |
− | आज सत्तर की उमर में | + | नीचे नहीं जा सका जिसके लिए |
− | नौ हजार पाँच सौ वाली पेंशन तक | + | लगातार संघर्षरत रहे मुक्तिबोध |
− | ऊपर आ गया | + | पांच रूपये महीने की ट्यूशन से चलकर |
− | फ़िर क्यों यह जीवनकंप | + | आज सत्तर की उमर में |
− | क्यों यह अग्निकांड | + | नौ हजार पाँच सौ वाली पेंशन तक |
− | की दुनिया का सबसे गरीब आदमी | + | ऊपर आ गया |
− | किस मुल्क में मिलेगा | + | फ़िर क्यों यह जीवनकंप |
− | क्या होगी उसकी देह-सम्पदा | + | क्यों यह अग्निकांड |
− | उसकी रोशनी, उसकी आवाज-जुबान और | + | की दुनिया का सबसे गरीब आदमी |
− | हड्डियाँ उसकी | + | किस मुल्क में मिलेगा |
− | उसके कुचले सपनों की मुट्ठीभर राख | + | क्या होगी उसकी देह-सम्पदा |
− | किस हंडिया में होगी या अथवा | + | उसकी रोशनी, उसकी आवाज-जुबान और |
− | और रोजमर्रा की चीजें | + | हड्डियाँ उसकी |
− | लता होगा कितना जर्जर पारदर्शी शरीर पर | + | उसके कुचले सपनों की मुट्ठीभर राख |
− | पेट में होंगे कितने दाने | + | किस हंडिया में होगी या अथवा |
− | या घास-पत्तियां | + | और रोजमर्रा की चीजें |
− | उसके इअर्द-गिर्द कितना घुप्प होगा | + | लता होगा कितना जर्जर पारदर्शी शरीर पर |
− | कितना जंगल में छिपा हुआ जंगल | + | पेट में होंगे कितने दाने |
− | मृत्यु से कितनी दुरी पर या नजदीक होगी | + | या घास-पत्तियां |
− | उसकी पता नहीं कौन-सी सांस | + | उसके इअर्द-गिर्द कितना घुप्प होगा |
− | किन-किन की फटी आंखों और | + | कितना जंगल में छिपा हुआ जंगल |
− | बुझे चेहरों के बीच वह | + | मृत्यु से कितनी दुरी पर या नजदीक होगी |
− | बुदबुदा या चुगला रहा होगा | + | उसकी पता नहीं कौन-सी सांस |
− | पता नहीं कौन-सा दृश्य, किसका नाम | + | किन-किन की फटी आंखों और |
− | कोई कैसे जान पाएगा कहाँ | + | बुझे चेहरों के बीच वह |
− | किस अक्षांश-देशांश पर | + | बुदबुदा या चुगला रहा होगा |
− | क्या सोच रहा है अभी इस वक्त | + | पता नहीं कौन-सा दृश्य, किसका नाम |
− | क्या बेहोशी में लिख रहा होगा गूंगी वसीयत | + | |
− | दुनिया का सबसे गरीब आदमी | + | कोई कैसे जान पाएगा कहाँ |
− | यानि बिल गेट्स की जात का नही | + | किस अक्षांश-देशांश पर |
− | उसके ठीक विपरीत छोर के | + | क्या सोच रहा है अभी इस वक्त |
− | अन्तिम बिन्दु पर खासता हुआ | + | क्या बेहोशी में लिख रहा होगा गूंगी वसीयत |
− | महाश्वेता | + | दुनिया का सबसे गरीब आदमी |
− | असंभव होगा उसका फोटू | + | यानि बिल गेट्स की जात का नही |
− | जिसे छपवा देते दुनिया के सबसे बड़े | + | उसके ठीक विपरीत छोर के |
− | धन्नासेठ के साथ | + | अन्तिम बिन्दु पर खासता हुआ |
− | और उसका नाम | + | महाश्वेता दीदी के पास भी |
− | मेरी क्या बिसात जे सोच पाऊं | + | असंभव होगा उसका फोटू |
− | जो होते अपने निराला-प्रेमचंद-नागार्जुन-मुक्तिबोध | + | जिसे छपवा देते दुनिया के सबसे बड़े |
− | या नेरुदा तो सम्भव है बता पाते | + | धन्नासेठ के साथ |
− | उसका सटीक कोई काल्पनिक नाम | + | और उसका नाम |
− | वैसे मुझे पता है आग का दरिया है ग़रीबी | + | मेरी क्या बिसात जे सोच पाऊं |
− | ज्वालामुखी है | + | जो होते अपने निराला-प्रेमचंद-नागार्जुन-मुक्तिबोध |
− | आँधियों की आंधी | + | या नेरुदा तो सम्भव है बता पाते |
− | उसके झपट्टे-थपेडे और बवंडर | + | उसका सटीक कोई काल्पनिक नाम |
− | ढहा सकते हैं | + | वैसे मुझे पता है आग का दरिया है ग़रीबी |
− | नए- से -नए साम्राज्यवाद और पाखंड को | + | ज्वालामुखी है |
− | बड़े- से- बड़े गढ़-शिखर | + | आँधियों की आंधी |
− | उडा सकते पूंजी बाजार के | + | उसके झपट्टे-थपेडे और बवंडर |
− | सोने-चांदी-इस्पात के पुख्ता टीन-टप्पर | + | ढहा सकते हैं |
− | पर इस वक़्त इतना उजाला | + | नए- से -नए साम्राज्यवाद और पाखंड को |
− | इतनी आँख-फोड़ चकाचौंध | + | बड़े- से- बड़े गढ़-शिखर |
− | दुश्मनों के फ़रेबों में फँसी पत्थर भूख | + | उडा सकते पूंजी बाजार के |
− | उन्हीं की जे-जयकार में शामिल | + | सोने-चांदी-इस्पात के पुख्ता टीन-टप्पर |
− | धड़ंग जुबानें | + | |
− | गाफ़िल गफ़लत में | + | पर इस वक़्त इतना उजाला |
− | गुणगान-कीर्तन में गूंगी | + | इतनी आँख-फोड़ चकाचौंध |
− | और मैं तरक्की की आकाशगंगा में | + | दुश्मनों के फ़रेबों में फँसी पत्थर भूख |
− | जगमगाती इक्कीसवीं सदी की छाती पर | + | उन्हीं की जे-जयकार में शामिल |
− | एक हास्यास्पद दृश्य | + | धड़ंग जुबानें |
+ | गाफ़िल गफ़लत में | ||
+ | गुणगान-कीर्तन में गूंगी | ||
+ | और मैं तरक्की की आकाशगंगा में | ||
+ | जगमगाती इक्कीसवीं सदी की छाती पर | ||
+ | एक हास्यास्पद दृश्य | ||
हलकान दुनिया के सबसे ग़रीब आदमी के वास्ते | हलकान दुनिया के सबसे ग़रीब आदमी के वास्ते | ||
+ | </poem> |
17:44, 15 अगस्त 2017 के समय का अवतरण
दुनिया का सबसे ग़रीब आदमी
दुनिया का सबसे गैब इन्सान
कौन होगा
सोच रहा हूँ उसकी माली हालत के बारे में
नहीं! नहीं !! सोच नहीं
कल्पना कर रहा हूँ
मुझे चक्कर आने लगे हैं
ग़रीब दुनिया के गंदगी से पते
विशाल दरिद्र मीना बाजार का सर्वे करते हुए
देवियों और सज्जनों
'चक्कर आने लगे हैं "
यह कविता की पंक्ति नहीं
जीवनकंप है जिससे जूझ रहा इस वक़्त
झनझना रही है रीढ़ की हड्डी
टूट रहे हैं वाक्य
शब्दों के मलबे में दबी-फँसी मनुजता को
बचा नहीं पा रहा
और वह अभिशप्त, पथरी छायाओं की भीड़ में
सबसे पीछे गुमसुम धब्बे-जैसा
कौन-सा नंबर बताऊँ उसका
मुझे तो विश्व जनसँख्या के आकड़े भी
याद नही आ रहे फ़िलवक़्त
फेहरिस्तसाजों को
दुनिया के कम- से -कम एक लाख एक
सबसे अन्तिम ग़रीबों की
अपटुडेट सूची बनाना चाहिए
नाम, उम्र, गांव, मुल्क और उनकी
डूबी-गहरी कुछ नहीं-जैसी संपति के तमाम
ब्यौरों सहित
हमारे मुल्क के एक कवि के बेटे के पास
ग्यारह गाडियाँ जिसमें एक देसी भी
जिसके सिर्फ़ चारों पहियों के दाम दस लाख
बताए थे उसके आश्वर्य-शानो-शौकत के एक
शोधकर्ता ने
तब भी विश्व के धन्नासेठों में शायद हिन्
जगह मिले
और दमड़िबाई को जानता हूँ मैं
ग़रीबी के साम्राज्य के विरत रूप का दर्शन
उसके पास कह नहीं पाऊंगा जुबान गल
जाएगी
पर इतना तो कह सकता हूँ वह दुनिया की
सबसे ग़रीब नहीं
दुनिया के सत्यापित सबसे धनी बिल गेट्स
का फ़ोटो
अख़बारों के पहले पन्ने पर
उसी के बगल में जो होता
दुनिया का सबसे ग़रीब का फ़ोटू
तो सूरज टूट कर बरस पड़ता भूमंडलीकरण
की
तुलनात्मक हकीकत पर रोशनी डालने के
लिए
पर कौन खींचकर लाएगा
उस निर्धनतम आदमी का फोटू
सातों समुन्दरों के कंकडों के बीच से
सबसे छोटा-घिसा-पिटा-चपटा कंकड़
यानी वह जिसे बापू ने अंतिम आदमी कहा था
हैरत होती है
क्या सोचकर कहा होगा
उसके आसूँ पोंछने के बारे में
और वे आसूँ जो अदृश्य सूखने पर भी बहते
ही रहते हैं
क्या कोई देख सकेगा उन्हें
और मेरी स्थिति कितनी शर्मनाक
न अमीरों की न गरीबों की गिनती में
और मेरी स्थिति कितनी शर्मनाक
न अमीरों की न गरीबों की गिनती में
मैं धोबी का कुत्ता प्रगतिशील
नीचे नहीं जा सका जिसके लिए
लगातार संघर्षरत रहे मुक्तिबोध
पांच रूपये महीने की ट्यूशन से चलकर
आज सत्तर की उमर में
नौ हजार पाँच सौ वाली पेंशन तक
ऊपर आ गया
फ़िर क्यों यह जीवनकंप
क्यों यह अग्निकांड
की दुनिया का सबसे गरीब आदमी
किस मुल्क में मिलेगा
क्या होगी उसकी देह-सम्पदा
उसकी रोशनी, उसकी आवाज-जुबान और
हड्डियाँ उसकी
उसके कुचले सपनों की मुट्ठीभर राख
किस हंडिया में होगी या अथवा
और रोजमर्रा की चीजें
लता होगा कितना जर्जर पारदर्शी शरीर पर
पेट में होंगे कितने दाने
या घास-पत्तियां
उसके इअर्द-गिर्द कितना घुप्प होगा
कितना जंगल में छिपा हुआ जंगल
मृत्यु से कितनी दुरी पर या नजदीक होगी
उसकी पता नहीं कौन-सी सांस
किन-किन की फटी आंखों और
बुझे चेहरों के बीच वह
बुदबुदा या चुगला रहा होगा
पता नहीं कौन-सा दृश्य, किसका नाम
कोई कैसे जान पाएगा कहाँ
किस अक्षांश-देशांश पर
क्या सोच रहा है अभी इस वक्त
क्या बेहोशी में लिख रहा होगा गूंगी वसीयत
दुनिया का सबसे गरीब आदमी
यानि बिल गेट्स की जात का नही
उसके ठीक विपरीत छोर के
अन्तिम बिन्दु पर खासता हुआ
महाश्वेता दीदी के पास भी
असंभव होगा उसका फोटू
जिसे छपवा देते दुनिया के सबसे बड़े
धन्नासेठ के साथ
और उसका नाम
मेरी क्या बिसात जे सोच पाऊं
जो होते अपने निराला-प्रेमचंद-नागार्जुन-मुक्तिबोध
या नेरुदा तो सम्भव है बता पाते
उसका सटीक कोई काल्पनिक नाम
वैसे मुझे पता है आग का दरिया है ग़रीबी
ज्वालामुखी है
आँधियों की आंधी
उसके झपट्टे-थपेडे और बवंडर
ढहा सकते हैं
नए- से -नए साम्राज्यवाद और पाखंड को
बड़े- से- बड़े गढ़-शिखर
उडा सकते पूंजी बाजार के
सोने-चांदी-इस्पात के पुख्ता टीन-टप्पर
पर इस वक़्त इतना उजाला
इतनी आँख-फोड़ चकाचौंध
दुश्मनों के फ़रेबों में फँसी पत्थर भूख
उन्हीं की जे-जयकार में शामिल
धड़ंग जुबानें
गाफ़िल गफ़लत में
गुणगान-कीर्तन में गूंगी
और मैं तरक्की की आकाशगंगा में
जगमगाती इक्कीसवीं सदी की छाती पर
एक हास्यास्पद दृश्य
हलकान दुनिया के सबसे ग़रीब आदमी के वास्ते