"घर में अकेली औरत के लिए / चन्द्रकान्त देवताले" के अवतरणों में अंतर
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− | पंखों में बसन्त को बांधकर | + | जिन्हें छल्ले की तरह अंगुली में पहनकर |
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− | तुम्हारा पति अभी बाहर है तुम नहाओ जी भर कर | + | तुम्हारा पति अभी बाहर है तुम नहाओ जी भर कर |
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− | फिर आइने को देखो इतना कि वह तड़कने को हो जाए | + | फिर आइने को देखो इतना कि वह तड़कने को हो जाए |
− | पर तड़कने के पहले अपनी परछाई हटा लो | + | पर तड़कने के पहले अपनी परछाई हटा लो |
− | घर की शान्ति के लिए यह ज़रूरी है | + | घर की शान्ति के लिए यह ज़रूरी है |
− | क्योंकि वह हमेशा के लिए नहीं | + | क्योंकि वह हमेशा के लिए नहीं |
− | सिर्फ़ शाम तक के लिए बाहर है | + | सिर्फ़ शाम तक के लिए बाहर है |
− | फिर याद करते हुए सो जाओ या चाहो तो अपनी पेटी को | + | फिर याद करते हुए सो जाओ या चाहो तो अपनी पेटी को |
− | उलट दो बीचोंबीच फ़र्श पर | + | उलट दो बीचोंबीच फ़र्श पर |
− | फिर एक-एक चीज़ को देखते हुए सोचो | + | फिर एक-एक चीज़ को देखते हुए सोचो |
− | और उन्हें जमाओ अपनी-अपनी जगह पर | + | और उन्हें जमाओ अपनी-अपनी जगह पर |
− | अब वह आएगा | + | अब वह आएगा |
− | तुम्हें कुछ बना लेना चाहिए | + | तुम्हें कुछ बना लेना चाहिए |
− | खाने के लिए और ठीक से | + | खाने के लिए और ठीक से |
− | हो जाना होगा सुथरे घर की तरह | + | हो जाना होगा सुथरे घर की तरह |
− | तुम्हारा पति | + | तुम्हारा पति |
− | एक पालतू आदमी है या नहीं | + | एक पालतू आदमी है या नहीं |
− | यह बात बेमानी है | + | यह बात बेमानी है |
− | पर वह शक्की हो सकता है | + | पर वह शक्की हो सकता है |
− | इसलिए उसकी प्रतीक्षा करो | + | इसलिए उसकी प्रतीक्षा करो |
− | पर छज्जे पर खड़े होकर नहीं | + | पर छज्जे पर खड़े होकर नहीं |
− | कमरे के भीतर वक्त का ठीक हिसाब रखते हुए | + | कमरे के भीतर वक्त का ठीक हिसाब रखते हुए |
− | उसके आने के पहले | + | उसके आने के पहले |
− | प्याज मत काटो | + | प्याज मत काटो |
− | प्याज काटने से शक की सुरसुराहट हो सकती है | + | प्याज काटने से शक की सुरसुराहट हो सकती है |
− | बिस्तर पर अच्छी किताबें पटक दो | + | बिस्तर पर अच्छी किताबें पटक दो |
− | जिन्हें पढ़ना कतई आवश्यक नहीं होगा | + | जिन्हें पढ़ना कतई आवश्यक नहीं होगा |
− | पर यह विचार पैदा करना अच्छा है | + | पर यह विचार पैदा करना अच्छा है |
− | कि अकेले में तुम इन्हें पढ़ती हो... | + | कि अकेले में तुम इन्हें पढ़ती हो...</poem> |
17:45, 15 अगस्त 2017 के समय का अवतरण
तुम्हें भूल जाना होगा समुद्र की मित्रता
और जाड़े के दिनों को
जिन्हें छल्ले की तरह अंगुली में पहनकर
तुमने हवा और आकाश में उछाला था
पंखों में बसन्त को बांधकर
उड़ने वाली चिडिया को पहचानने से
मुकर जाना ही अच्छा होगा......
तुम्हारा पति अभी बाहर है तुम नहाओ जी भर कर
आइने के सामने कपड़े उतारो
आइने के सामने पहनो
फिर आइने को देखो इतना कि वह तड़कने को हो जाए
पर तड़कने के पहले अपनी परछाई हटा लो
घर की शान्ति के लिए यह ज़रूरी है
क्योंकि वह हमेशा के लिए नहीं
सिर्फ़ शाम तक के लिए बाहर है
फिर याद करते हुए सो जाओ या चाहो तो अपनी पेटी को
उलट दो बीचोंबीच फ़र्श पर
फिर एक-एक चीज़ को देखते हुए सोचो
और उन्हें जमाओ अपनी-अपनी जगह पर
अब वह आएगा
तुम्हें कुछ बना लेना चाहिए
खाने के लिए और ठीक से
हो जाना होगा सुथरे घर की तरह
तुम्हारा पति
एक पालतू आदमी है या नहीं
यह बात बेमानी है
पर वह शक्की हो सकता है
इसलिए उसकी प्रतीक्षा करो
पर छज्जे पर खड़े होकर नहीं
कमरे के भीतर वक्त का ठीक हिसाब रखते हुए
उसके आने के पहले
प्याज मत काटो
प्याज काटने से शक की सुरसुराहट हो सकती है
बिस्तर पर अच्छी किताबें पटक दो
जिन्हें पढ़ना कतई आवश्यक नहीं होगा
पर यह विचार पैदा करना अच्छा है
कि अकेले में तुम इन्हें पढ़ती हो...