"बाई दरद ले ! / चन्द्रकान्त देवताले" के अवतरणों में अंतर
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− | इस वक़्त तेरे बदन में धरती की हलचल है | + | तेरे पास और नसीब में जो नहीं था |
− | घास की ज़मीन पर लेटी | + | और थे जो पत्थर तोड़ने वाले दिन उस सबके बाद |
− | तू एक भरी पूरी औरत आंखों को मींच कर | + | इस वक़्त तेरे बदन में धरती की हलचल है |
− | काया को चट्टान क्यों बना रही है | + | घास की ज़मीन पर लेटी |
+ | तू एक भरी पूरी औरत आंखों को मींच कर | ||
+ | काया को चट्टान क्यों बना रही है | ||
− | बाई तुझे दरद लेना हैं | + | बाई तुझे दरद लेना हैं |
− | जिन्दगी भर पहाड़ ढोए तूने | + | जिन्दगी भर पहाड़ ढोए तूने |
− | मुश्किल नहीं है तेरे लिए दरद लेना | + | मुश्किल नहीं है तेरे लिए दरद लेना |
− | जल्दी कर होश में आ वरना उसके सिर पर जोर पड़ेगा | + | जल्दी कर होश में आ वरना उसके सिर पर जोर पड़ेगा |
− | पता नहीं कितनी देर बाद रोए या ना भी रोए | + | पता नहीं कितनी देर बाद रोए या ना भी रोए |
− | फटी आंख से मत देख | + | फटी आंख से मत देख |
− | भूल जा जोर जबरदस्ती की रात | + | भूल जा जोर जबरदस्ती की रात |
− | अँधेरे के हमले को भूल जा बाई | + | अँधेरे के हमले को भूल जा बाई |
− | याद कर खेत और पानी का रिश्ता | + | याद कर खेत और पानी का रिश्ता |
− | सब कुछ सहते रहने के बाद भी | + | सब कुछ सहते रहने के बाद भी |
− | कितना दरद लेती है धरती | + | कितना दरद लेती है धरती |
− | किस किस हिस्से में कहॉ कहॉ | + | किस किस हिस्से में कहॉ कहॉ |
− | तभी तो जनम लेती हैं फसलें | + | तभी तो जनम लेती हैं फसलें |
− | नहीं लेती तो सूख जाती सारी हरियाली | + | नहीं लेती तो सूख जाती सारी हरियाली |
− | कोयला हो जाते जंगल | + | कोयला हो जाते जंगल |
− | पत्थर हो जाता कोख तक का पानी | + | पत्थर हो जाता कोख तक का पानी |
− | याद मत कर अपने दुखों को | + | याद मत कर अपने दुखों को |
− | आने को बेचैन है धरती पर जीव | + | आने को बेचैन है धरती पर जीव |
− | आकाश पाताल में भी अट नहीं सकता | + | आकाश पाताल में भी अट नहीं सकता |
− | इतना है औरत जात का दुःख | + | इतना है औरत जात का दुःख |
− | धरती का सारा पानी भी | + | धरती का सारा पानी भी |
− | धो नहीं सकता | + | धो नहीं सकता |
− | इतने हैं आंसुओं के सूखे धब्बे | + | इतने हैं आंसुओं के सूखे धब्बे |
− | सीता ने कहा था - फट जा धरती | + | सीता ने कहा था - फट जा धरती |
− | ना जाने कब से चल रही है ये कहानी | + | ना जाने कब से चल रही है ये कहानी |
− | फिर भी रुकी नहीं है दुनिया | + | फिर भी रुकी नहीं है दुनिया |
− | बाई दरद ले! | + | बाई दरद ले! |
− | सुन बहते पानी की आवाज़ | + | सुन बहते पानी की आवाज़ |
− | हाँ ! ऐसे ही देख ऊपर हरी पत्तियां | + | हाँ ! ऐसे ही देख ऊपर हरी पत्तियां |
− | सुन ले उसके रोने की आवाज़ | + | सुन ले उसके रोने की आवाज़ |
− | जो अभी होने को है | + | जो अभी होने को है |
− | जिंदा हो जायेगी तेरी देह | + | जिंदा हो जायेगी तेरी देह |
− | झरने लगेगा दूध दो नन्हें होंठों के लिए | + | झरने लगेगा दूध दो नन्हें होंठों के लिए |
− | बाई! दरद ले | + | बाई! दरद ले</poem> |
17:50, 15 अगस्त 2017 के समय का अवतरण
तेरे पास और नसीब में जो नहीं था
और थे जो पत्थर तोड़ने वाले दिन उस सबके बाद
इस वक़्त तेरे बदन में धरती की हलचल है
घास की ज़मीन पर लेटी
तू एक भरी पूरी औरत आंखों को मींच कर
काया को चट्टान क्यों बना रही है
बाई तुझे दरद लेना हैं
जिन्दगी भर पहाड़ ढोए तूने
मुश्किल नहीं है तेरे लिए दरद लेना
जल्दी कर होश में आ वरना उसके सिर पर जोर पड़ेगा
पता नहीं कितनी देर बाद रोए या ना भी रोए
फटी आंख से मत देख
भूल जा जोर जबरदस्ती की रात
अँधेरे के हमले को भूल जा बाई
याद कर खेत और पानी का रिश्ता
सब कुछ सहते रहने के बाद भी
कितना दरद लेती है धरती
किस किस हिस्से में कहॉ कहॉ
तभी तो जनम लेती हैं फसलें
नहीं लेती तो सूख जाती सारी हरियाली
कोयला हो जाते जंगल
पत्थर हो जाता कोख तक का पानी
याद मत कर अपने दुखों को
आने को बेचैन है धरती पर जीव
आकाश पाताल में भी अट नहीं सकता
इतना है औरत जात का दुःख
धरती का सारा पानी भी
धो नहीं सकता
इतने हैं आंसुओं के सूखे धब्बे
सीता ने कहा था - फट जा धरती
ना जाने कब से चल रही है ये कहानी
फिर भी रुकी नहीं है दुनिया
बाई दरद ले!
सुन बहते पानी की आवाज़
हाँ ! ऐसे ही देख ऊपर हरी पत्तियां
सुन ले उसके रोने की आवाज़
जो अभी होने को है
जिंदा हो जायेगी तेरी देह
झरने लगेगा दूध दो नन्हें होंठों के लिए
बाई! दरद ले