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"औरत / चन्द्रकान्त देवताले" के अवतरणों में अंतर

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उसके हाथ अपना चेहरा ढूँढ रहे हैं
 
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उसके पाँव
कितना आटा गूँध रही है?
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जाने कब से
 
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सबसे
गूँध रही है मनों सेर आटा
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अपना पता पूछ रहे हैं.
 
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असंख्य रोटियाँ सूरज की पीठ पर पका रही है
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एक औरत वक्त की नदी में दोपहर के पत्थर से
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एक औरत अनन्त पृथ्वी को अपने स्तनों में समेटे
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दूध के झरने बहा रही है
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धरती को नापती ही जा रही है
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निर्वसन जागती शताब्दियों से सोई है
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एक औरत का धड़ भीड़ में भटक रहा है  
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उसके हाथ अपना चेहरा ढूँढ रहे हैं  
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उसके पाँव जाने कब से सबसे अपना पता पूछ रहे हैं।
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17:54, 15 अगस्त 2017 के समय का अवतरण

वह औरत
आकाश और पृथ्वी के बीच
कब से कपड़े पछीट रही है,

पछीट रही है शताब्दिशें से
धूप के तार पर सुखा रही है,
वह औरत आकाश और धूप और हवा से
वंचित घुप्प गुफा में
कितना आटा गूंध रही है?
गूंध रही है मानों सेर आटा
असंख्य रोटियाँ
सूरज की पीठ पर पका रही है,

एक औरत
दिशाओं के सूप में खेतों को
फटक रही है
एक औरत
वक़्त की नदी में
दोपहर के पत्थर से
शताब्दियाँ हो गईं
एड़ी घिस रही है,

एक औरत अनंत पृथ्वी को
अपने स्तनों में समेटे
दूध के झरने बहा रही है,
एक औरत अपने सिर पर
घास का गट्ठर रखे
कब से धरती को
नापती ही जा रही है,

एक औरत अँधेरे में
खर्राटे भरते हुए आदमी के पास
निर्वसर जागती
शताब्दियों से सोयी है,

एक औरत का धड़
भीड़ में भटक रहा है
उसके हाथ अपना चेहरा ढूँढ रहे हैं
उसके पाँव
जाने कब से
सबसे
अपना पता पूछ रहे हैं.