भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"क्यों मन इतना बेचैन सखी / तारकेश्वरी तरु 'सुधि'" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=तारकेश्वरी तरु 'सुधि' |अनुवादक= |सं...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
 
पंक्ति 15: पंक्ति 15:
 
हलचल है कोई तन मन मे,
 
हलचल है कोई तन मन मे,
 
खो कर जीती हूँ चैन सखी!
 
खो कर जीती हूँ चैन सखी!
क्यों  इतना ....................
 
  
 
जब  चाहत की लहरें उठती ,
 
जब  चाहत की लहरें उठती ,
पंक्ति 23: पंक्ति 22:
 
सारा दिन  गुजरे गीतों सँग ,
 
सारा दिन  गुजरे गीतों सँग ,
 
तारों सँग गुज़रे रैन सखी!
 
तारों सँग गुज़रे रैन सखी!
क्यों  इतना .....................
 
  
 
करती यदि चाहत की चाहत,
 
करती यदि चाहत की चाहत,
पंक्ति 31: पंक्ति 29:
 
तस्वीर बसाकर इस दिल में,
 
तस्वीर बसाकर इस दिल में,
 
आबाद करूँ  ये नैन सखी!
 
आबाद करूँ  ये नैन सखी!
क्यों इतना .....................
 
 
</poem>
 
</poem>

18:57, 18 अगस्त 2017 के समय का अवतरण

क्यों मन इतना बेचैन सखी !

मनवा मेरा कुछ पागल -सा,
नित सोचे तुझको साँझ ढले।
तकते रस्ता खामोश नयन,
सुंदर- सा इनमें स्वप्न पले।
हलचल है कोई तन मन मे,
खो कर जीती हूँ चैन सखी!

जब चाहत की लहरें उठती ,
होठों पर आता गीत नया।
झूमे तब मन का हर कोना ,
बजने लगता संगीत नया ।
सारा दिन गुजरे गीतों सँग ,
तारों सँग गुज़रे रैन सखी!

करती यदि चाहत की चाहत,
तब आज शिकायत ये कैसी।
मुझको चलना होगा उन पर,
चुन ली मैने राहें जैसी।
तस्वीर बसाकर इस दिल में,
आबाद करूँ ये नैन सखी!