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"क्यों मन इतना बेचैन सखी / तारकेश्वरी तरु 'सुधि'" के अवतरणों में अंतर
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सारा दिन गुजरे गीतों सँग , | सारा दिन गुजरे गीतों सँग , | ||
तारों सँग गुज़रे रैन सखी! | तारों सँग गुज़रे रैन सखी! | ||
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करती यदि चाहत की चाहत, | करती यदि चाहत की चाहत, | ||
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तस्वीर बसाकर इस दिल में, | तस्वीर बसाकर इस दिल में, | ||
आबाद करूँ ये नैन सखी! | आबाद करूँ ये नैन सखी! | ||
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18:57, 18 अगस्त 2017 के समय का अवतरण
क्यों मन इतना बेचैन सखी !
मनवा मेरा कुछ पागल -सा,
नित सोचे तुझको साँझ ढले।
तकते रस्ता खामोश नयन,
सुंदर- सा इनमें स्वप्न पले।
हलचल है कोई तन मन मे,
खो कर जीती हूँ चैन सखी!
जब चाहत की लहरें उठती ,
होठों पर आता गीत नया।
झूमे तब मन का हर कोना ,
बजने लगता संगीत नया ।
सारा दिन गुजरे गीतों सँग ,
तारों सँग गुज़रे रैन सखी!
करती यदि चाहत की चाहत,
तब आज शिकायत ये कैसी।
मुझको चलना होगा उन पर,
चुन ली मैने राहें जैसी।
तस्वीर बसाकर इस दिल में,
आबाद करूँ ये नैन सखी!