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"जुल्म की दीवार उठ कर तोड़ दो / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर

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15:18, 19 अगस्त 2017 का अवतरण

जुल्म की दीवार उठ कर तोड़ दो।
अब क्षमा की बात करनी छोड़ दो।

जो अमन, सुख-चैन में डाले खलल,
शीश उसका ठोकरों से फोड़ दो।

जंगलों के पथ बहुत भटका चुके,
अब उन्हें भी मार्गों से जोड दो।
 
बीज बोना है अगर तो लो समझ,
भूमि को अच्छे से पहले गोड़ दो।

आदमी के रक्त में गर्मी रहे,
चेतना को प्राण तक झकझोड़ दो।