भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"बात को साफ कहो, सीधे कहो / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=डी. एम. मिश्र |संग्रह=आईना-दर-आईना /...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
15:18, 19 अगस्त 2017 का अवतरण
बात को साफ कहो, सीधे कहो।
वो भले तेज, भले धीमे कहो।
जो सही है वो कहीं व्यक्त करो,
सामने मॅुह पे कहो, पीछे कहो।
बात ही क्या वो जो असर न करे,
रुख बदल के वही अब तीखे कहो।
बात मंदिर की हो कि मस्जिद की,
जो ज़रूरी वो ज़हर पी के कहो।
जिक्र सतयुग का न छेड़ो असमय,
जी रहे युग जो वही जी के कहो।