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"छल-फ़रेबों से निकलकर देखें / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर
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15:21, 19 अगस्त 2017 का अवतरण
छल-फ़रेबों से निकलकर देखें।
क्यों न रिश्तों को तोड़कर देखें।
क्या लिखा है मेरे मुकद्दर में,
अपने माथे को फोड़कर देखें।
अब हकीकत से उठायें परदा,
क्या है भीतर में खोलकर देखें।
अभी तक दूसरों को देखा है,
मौत अपनी भी तो मरकर देखें।
खामियाँ दूसरों की गिनते हैं,
कभी अपने को तौलकर देखें।