भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"रस्मे वफा के वास्ते हर सुख भुला दिया / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
पंक्ति 6: पंक्ति 6:
 
{{KKCatGhazal}}
 
{{KKCatGhazal}}
 
<poem>
 
<poem>
रस्मे वफा़ के वास्ते हर सुख भुला दिया।
+
रस्मे वफ़ा के वास्ते हर सुख भुला दिया।
मैंने तो अपना एक-एक पल लगा दिया।  
+
मैंने तो जिंदगी का इक-इक पल लगा दिया।  
  
 
इतनी भी इनायत तो मगर कम नहीं है दोस्त,
 
इतनी भी इनायत तो मगर कम नहीं है दोस्त,

09:20, 23 अगस्त 2017 का अवतरण

रस्मे वफ़ा के वास्ते हर सुख भुला दिया।
मैंने तो जिंदगी का इक-इक पल लगा दिया।

इतनी भी इनायत तो मगर कम नहीं है दोस्त,
मेरी जो ख़ता थी मुझे पहले बता दिया।

फिर आखिरी समय पे क्या शिकवा गिला करें,
अच्छा किया जो तुमने मुझे फिर दगा दिया।

इतना दिया है और क्या देती दिवानगी,
चाहत को मेरी उसने इबादत बना दिया।

पल भर को अपने आँसुओं को रोक कर सनम,
देखा तुम्हें जो खुश तो मैने मुस्करा दिया।