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"रस्मे वफा के वास्ते हर सुख भुला दिया / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर
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इतनी भी इनायत तो मगर कम नहीं है दोस्त, | इतनी भी इनायत तो मगर कम नहीं है दोस्त, | ||
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फिर आखिरी समय पे क्या शिकवा गिला करें, | फिर आखिरी समय पे क्या शिकवा गिला करें, |
09:21, 23 अगस्त 2017 का अवतरण
रस्मे वफ़ा के वास्ते हर सुख भुला दिया।
मैंने तो जिंदगी का इक-इक पल लगा दिया।
इतनी भी इनायत तो मगर कम नहीं है दोस्त,
गिन गिन के मेरी हर ख़ता तूने बता दिया।
फिर आखिरी समय पे क्या शिकवा गिला करें,
अच्छा किया जो तुमने मुझे फिर दगा दिया।
इतना दिया है और क्या देती दिवानगी,
चाहत को मेरी उसने इबादत बना दिया।
पल भर को अपने आँसुओं को रोक कर सनम,
देखा तुम्हें जो खुश तो मैने मुस्करा दिया।