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"खोलेगी ज़िंदगी कभी जब उम्र की बही / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर
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− | खोलेगी ज़िंदगी कभी जब उम्र की | + | खोलेगी ज़िंदगी कभी जब उम्र की बही |
फिर-फिर लहक उठेंगें मेरे चार दिन यही। | फिर-फिर लहक उठेंगें मेरे चार दिन यही। | ||
− | सब कुछ बदल गया समय के साथ-साथ पर | + | सब कुछ बदल गया समय के साथ-साथ पर |
इक याद ही तेरी है जो दिल से लगी रही। | इक याद ही तेरी है जो दिल से लगी रही। | ||
− | सुनता तो दिल ये खूब है, कहता ही कुछ नहीं | + | सुनता तो दिल ये खूब है, कहता ही कुछ नहीं |
खुशियाँ तो मिली ही नहीं , आँसू ही अब सही। | खुशियाँ तो मिली ही नहीं , आँसू ही अब सही। | ||
− | सावन की तरह जिसके लिए मैं भरा रहा | + | सावन की तरह जिसके लिए मैं भरा रहा |
अफ़सोस उम्र भर की प्यास दे गया वही। | अफ़सोस उम्र भर की प्यास दे गया वही। | ||
− | मैं डूबने गया था बचाने में जुट गया | + | मैं डूबने गया था बचाने में जुट गया |
लड़की कोई नदी में थी पहले से बह रही। | लड़की कोई नदी में थी पहले से बह रही। | ||
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16:18, 23 अगस्त 2017 के समय का अवतरण
खोलेगी ज़िंदगी कभी जब उम्र की बही
फिर-फिर लहक उठेंगें मेरे चार दिन यही।
सब कुछ बदल गया समय के साथ-साथ पर
इक याद ही तेरी है जो दिल से लगी रही।
सुनता तो दिल ये खूब है, कहता ही कुछ नहीं
खुशियाँ तो मिली ही नहीं , आँसू ही अब सही।
सावन की तरह जिसके लिए मैं भरा रहा
अफ़सोस उम्र भर की प्यास दे गया वही।
मैं डूबने गया था बचाने में जुट गया
लड़की कोई नदी में थी पहले से बह रही।