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"बड़े अज़ीब मकाँ उम्र भी दिखाती है / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर

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हज़ार आँसुओं से जिंदगी रूलाती है।
 
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खड़े दरख़्त मगर घूमती हुई छाया,
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खड़े दरख़्त मगर घूमती हुई छाया
 
कभी करीब, कभी दूर-दूर जाती है।
 
कभी करीब, कभी दूर-दूर जाती है।
  
कभी सफ़र न रूका साथ के लिए फिर भी,
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कभी सफ़र न रूका साथ के लिए फिर भी
 
कभी उम्मीद, कभी दोस्ती रूलाती है।
 
कभी उम्मीद, कभी दोस्ती रूलाती है।
  
सुबह से शाम तलक सिर्फ़ खेाजता फिरता,
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फिर भी मंजिल मेरी कहीं नज़र न आती है।
 
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कभी गुनाह लगे तो कभी सवाब लगे,
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किसी पानी पे नदी कौन ठहर पाती है।
 
किसी पानी पे नदी कौन ठहर पाती है।
 
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16:27, 23 अगस्त 2017 का अवतरण

बड़े अज़ीब मकाँ उम्र भी दिखाती है
हज़ार आँसुओं से जिंदगी रूलाती है।

खड़े दरख़्त मगर घूमती हुई छाया
कभी करीब, कभी दूर-दूर जाती है।

कभी सफ़र न रूका साथ के लिए फिर भी
कभी उम्मीद, कभी दोस्ती रूलाती है।

सुबह से शाम तलक सिर्फ़ खेाजता फिरता
फिर भी मंजिल मेरी कहीं नज़र न आती है।

कभी गुनाह लगे तो कभी सवाब लगे
किसी पानी पे नदी कौन ठहर पाती है।