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"जामे ज़हर भी पी गया अश्कों में ढालकर / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर

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जामे ज़हर भी पी गया अश्कों में ढालकर।
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जामे ज़हर भी पी गया अश्कों में ढालकर
 
बैठा था मसीहा मेरा खंज़र निकालकर।
 
बैठा था मसीहा मेरा खंज़र निकालकर।
  
खेती में जो पैदा किया वो बेचना पड़ा,
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खेती में जो पैदा किया वो बेचना पड़ा
 
बच्चों को अब खिला रहा कंकड़ उबालकर।
 
बच्चों को अब खिला रहा कंकड़ उबालकर।
  
जल्लाद मुझको कह रहा हँस करके दिखाओ,
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जल्लाद मुझको कह रहा हँस करके दिखाओ
 
मेरे गले में मूँज का फंदा वो डालकर।
 
मेरे गले में मूँज का फंदा वो डालकर।
  
आँखों की सफेदी न सियाही ही आयी काम,
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आँखों की सफेदी न सियाही ही आयी काम
 
देखेंगे गुल खिलेगा क्या आँखों को लाल कर।
 
देखेंगे गुल खिलेगा क्या आँखों को लाल कर।
  
मरने के खौफ से ही तू तिल-तिल मरेगा रोज़,
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मरने के खौफ से ही तू तिल-तिल मरेगा रोज़
 
कब तक डरेगा जुल्म से खुद से सवाल कर।
 
कब तक डरेगा जुल्म से खुद से सवाल कर।
  
अपने ही अहंकार में जल जायेगा इक दिन,
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अपने ही अहंकार में जल जायेगा इक दिन
 
थूकेगा न इतिहास भी इसका खयाल कर।
 
थूकेगा न इतिहास भी इसका खयाल कर।
  
इन्सान के कपड़े पहन के आ गया शैतान,
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इन्सान के कपड़े पहन के आ गया शैतान
 
बेशक मिलाना हाथ उससे पर सँभालकर।
 
बेशक मिलाना हाथ उससे पर सँभालकर।
  
 
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17:01, 23 अगस्त 2017 के समय का अवतरण

जामे ज़हर भी पी गया अश्कों में ढालकर
बैठा था मसीहा मेरा खंज़र निकालकर।

खेती में जो पैदा किया वो बेचना पड़ा
बच्चों को अब खिला रहा कंकड़ उबालकर।

जल्लाद मुझको कह रहा हँस करके दिखाओ
मेरे गले में मूँज का फंदा वो डालकर।

आँखों की सफेदी न सियाही ही आयी काम
देखेंगे गुल खिलेगा क्या आँखों को लाल कर।

मरने के खौफ से ही तू तिल-तिल मरेगा रोज़
कब तक डरेगा जुल्म से खुद से सवाल कर।

अपने ही अहंकार में जल जायेगा इक दिन
थूकेगा न इतिहास भी इसका खयाल कर।

इन्सान के कपड़े पहन के आ गया शैतान
बेशक मिलाना हाथ उससे पर सँभालकर।