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"बड़े-बड़े पर्वत, पहाड़ देखे हैं जो वीरान बने / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर
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− | बड़े-बड़े पर्वत, पहाड़ देखे हैं जो वीरान | + | बड़े-बड़े पर्वत, पहाड़ देखे हैं जो वीरान बने |
इन्सानों के बीच में रहकर पत्थर भी भगवान बने। | इन्सानों के बीच में रहकर पत्थर भी भगवान बने। | ||
− | उस विष का भी आदर हो जो काम मनुष्यों के आये | + | उस विष का भी आदर हो जो काम मनुष्यों के आये |
देवलोक का झूठा अमरित क्यों धरती का गान बने। | देवलोक का झूठा अमरित क्यों धरती का गान बने। | ||
− | अभिशापों को हँस-हँस कर जी लेना ही तो जीवन है | + | अभिशापों को हँस-हँस कर जी लेना ही तो जीवन है |
राम-कृष्ण-हज़रत-ईसा मानव बनकर भगवान बने। | राम-कृष्ण-हज़रत-ईसा मानव बनकर भगवान बने। | ||
− | फूल खिलाते इसीलिए हम देवों के भी काम आये | + | फूल खिलाते इसीलिए हम देवों के भी काम आये |
अपने घर की माटी महके, अंबर तक पहचान बने। | अपने घर की माटी महके, अंबर तक पहचान बने। | ||
− | क्यों हम डरें मौत से जीवन चंद गणित है साँसों का | + | क्यों हम डरें मौत से जीवन चंद गणित है साँसों का |
धरती कभी बिछौना है तो कभी यही श्मशान बने। | धरती कभी बिछौना है तो कभी यही श्मशान बने। | ||
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17:04, 23 अगस्त 2017 के समय का अवतरण
बड़े-बड़े पर्वत, पहाड़ देखे हैं जो वीरान बने
इन्सानों के बीच में रहकर पत्थर भी भगवान बने।
उस विष का भी आदर हो जो काम मनुष्यों के आये
देवलोक का झूठा अमरित क्यों धरती का गान बने।
अभिशापों को हँस-हँस कर जी लेना ही तो जीवन है
राम-कृष्ण-हज़रत-ईसा मानव बनकर भगवान बने।
फूल खिलाते इसीलिए हम देवों के भी काम आये
अपने घर की माटी महके, अंबर तक पहचान बने।
क्यों हम डरें मौत से जीवन चंद गणित है साँसों का
धरती कभी बिछौना है तो कभी यही श्मशान बने।