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"हम भारत के भाग्य-विधाता मतदाता चिरकुट आबाद / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर

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हम भारत के भाग्य-विधाता मतदाता चिरकुट आबाद।
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हम भारत के भाग्य-विधाता मतदाता चिरकुट आबाद
 
लोकतंत्र की ऐसी-तैसी नेता जी का ज़िंदाबाद।
 
लोकतंत्र की ऐसी-तैसी नेता जी का ज़िंदाबाद।
  
वो भी अपना ही भाई है मजे करै करने दे यार,
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वो भी अपना ही भाई है मजे करै करने दे यार
 
तू जिस लायक़ तू वह ही कर थाम कटोरा कर फ़रियाद।
 
तू जिस लायक़ तू वह ही कर थाम कटोरा कर फ़रियाद।
  
बड़े-बड़े ऊँचे महलों से पूछ रहा है मड़ईलाल,
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बड़े-बड़े ऊँचे महलों से पूछ रहा है मड़ईलाल
 
मेरा सब कुछ पराधीन है, किसका भारत है आज़ाद।
 
मेरा सब कुछ पराधीन है, किसका भारत है आज़ाद।
  
  
हर दल का अपना निशान है, मगर निशाना सब का एक,
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हर दल का अपना निशान है, मगर निशाना सब का एक
 
पहले भरो तिजोरी अपनी मुल्क-राष्ट्र फिर उसके बाद।
 
पहले भरो तिजोरी अपनी मुल्क-राष्ट्र फिर उसके बाद।
  
कफ़नचोर खा गये दलाली वीर शहीदों का ताबूत,
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कफ़नचोर खा गये दलाली वीर शहीदों का ताबूत
 
फटहा बूट सिपाही पटकैं रक्षामंत्री ज़िंदाबाद।
 
फटहा बूट सिपाही पटकैं रक्षामंत्री ज़िंदाबाद।
  
सच्चाई का पहन मुखौटा ज्ञान बताने निकला झूठ,
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सच्चाई का पहन मुखौटा ज्ञान बताने निकला झूठ
 
मेरी जेब कतरने वाला सिखा रहा मुझको मरजाद।
 
मेरी जेब कतरने वाला सिखा रहा मुझको मरजाद।
  
उससे क्या उम्मीद करोगे उसको बस कुर्र्सी से प्यार,
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उससे क्या उम्मीद करोगे उसको बस कुर्र्सी से प्यार
 
जनता जाये भाड़ में वो बस अपना मतलब रखता याद।
 
जनता जाये भाड़ में वो बस अपना मतलब रखता याद।
  
दारू बँटने लगी मुफ़्त में लगता है आ गया चुनाव,
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दारू बँटने लगी मुफ़्त में लगता है आ गया चुनाव
 
जा जग्गू जा तू भी ले आ कहाँ मिलेगी इसके बाद।
 
जा जग्गू जा तू भी ले आ कहाँ मिलेगी इसके बाद।
  
नेताओं ने वोट के लिए बाँट दिया है पूरा मुल्क,
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नेताओं ने वोट के लिए बाँट दिया है पूरा मुल्क
 
फिर भी जिंदाबाद एकता बेमिसाल कायम सौहार्द।
 
फिर भी जिंदाबाद एकता बेमिसाल कायम सौहार्द।
 
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17:05, 23 अगस्त 2017 का अवतरण

हम भारत के भाग्य-विधाता मतदाता चिरकुट आबाद
लोकतंत्र की ऐसी-तैसी नेता जी का ज़िंदाबाद।

वो भी अपना ही भाई है मजे करै करने दे यार
तू जिस लायक़ तू वह ही कर थाम कटोरा कर फ़रियाद।

बड़े-बड़े ऊँचे महलों से पूछ रहा है मड़ईलाल
मेरा सब कुछ पराधीन है, किसका भारत है आज़ाद।


हर दल का अपना निशान है, मगर निशाना सब का एक
पहले भरो तिजोरी अपनी मुल्क-राष्ट्र फिर उसके बाद।

कफ़नचोर खा गये दलाली वीर शहीदों का ताबूत
फटहा बूट सिपाही पटकैं रक्षामंत्री ज़िंदाबाद।

सच्चाई का पहन मुखौटा ज्ञान बताने निकला झूठ
मेरी जेब कतरने वाला सिखा रहा मुझको मरजाद।

उससे क्या उम्मीद करोगे उसको बस कुर्र्सी से प्यार
जनता जाये भाड़ में वो बस अपना मतलब रखता याद।

दारू बँटने लगी मुफ़्त में लगता है आ गया चुनाव
जा जग्गू जा तू भी ले आ कहाँ मिलेगी इसके बाद।

नेताओं ने वोट के लिए बाँट दिया है पूरा मुल्क
फिर भी जिंदाबाद एकता बेमिसाल कायम सौहार्द।