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"तेरे जाने पर भी तेरी याद न मन से जाती है / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर

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तेरे जाने पर भी तेरी याद न मन से जाती है।
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तेरे जाने पर भी तेरी याद न मन से जाती है
 
घरके कोने-कोने से बस तेरी खुशबू आती है।
 
घरके कोने-कोने से बस तेरी खुशबू आती है।
  
कितनी कशिश तुम्हारे भीतर, कितना प्यार छलकता है,
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कितनी कशिश तुम्हारे भीतर, कितना प्यार छलकता है
 
बार-बार तुम ही तुम दिखते याद बहुत तड़पाती है।
 
बार-बार तुम ही तुम दिखते याद बहुत तड़पाती है।
  
तेरे आ जाने से मेरा घर, घर जैसा लगता है,
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तेरे आ जाने से मेरा घर, घर जैसा लगता है
 
जिस कमरे को कभी न खोलो वहाँ धूल जम जाती है।
 
जिस कमरे को कभी न खोलो वहाँ धूल जम जाती है।
  
दूर चले जाने से कोई जु़दा नहीं हो जाता है,
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दूर चले जाने से कोई जु़दा नहीं हो जाता है
 
कभी-कभी दूरी लोगों को और निकट ले आती है।
 
कभी-कभी दूरी लोगों को और निकट ले आती है।
  
पुरखों ने यह सही कहा है सबको वक़्त सिखा देता है,
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पुरखों ने यह सही कहा है सबको वक़्त सिखा देता है
 
कल की वो मासूम-सी बच्ची दुल्हन बन शरमाती है।
 
कल की वो मासूम-सी बच्ची दुल्हन बन शरमाती है।
  
झाँसी की रानी हो लेकिन, लड़की पहले लड़की है,
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झाँसी की रानी हो लेकिन, लड़की पहले लड़की है
 
शील, आचरण, पावनता के बल पर वो सकुचाती है।
 
शील, आचरण, पावनता के बल पर वो सकुचाती है।
  
धूप की पहली किरण हो या आषाढ़़ की पहली बारिश हो,
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धूप की पहली किरण हो या आषाढ़़ की पहली बारिश हो
 
वेा गरीब के खुले-खुले आँगन में पहले आती है।
 
वेा गरीब के खुले-खुले आँगन में पहले आती है।
 
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17:05, 23 अगस्त 2017 के समय का अवतरण

तेरे जाने पर भी तेरी याद न मन से जाती है
घरके कोने-कोने से बस तेरी खुशबू आती है।

कितनी कशिश तुम्हारे भीतर, कितना प्यार छलकता है
बार-बार तुम ही तुम दिखते याद बहुत तड़पाती है।

तेरे आ जाने से मेरा घर, घर जैसा लगता है
जिस कमरे को कभी न खोलो वहाँ धूल जम जाती है।

दूर चले जाने से कोई जु़दा नहीं हो जाता है
कभी-कभी दूरी लोगों को और निकट ले आती है।

पुरखों ने यह सही कहा है सबको वक़्त सिखा देता है
कल की वो मासूम-सी बच्ची दुल्हन बन शरमाती है।

झाँसी की रानी हो लेकिन, लड़की पहले लड़की है
शील, आचरण, पावनता के बल पर वो सकुचाती है।

धूप की पहली किरण हो या आषाढ़़ की पहली बारिश हो
वेा गरीब के खुले-खुले आँगन में पहले आती है।