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"जेा भी है जैसी भी है अपनी सँवारो ज़िंदगी / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर
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− | जेा भी है जैसी भी है अपनी सँवारो | + | जेा भी है जैसी भी है अपनी सँवारो ज़िंदगी |
काटनी है जिंदगी तो हँस के काटो ज़िंदगी। | काटनी है जिंदगी तो हँस के काटो ज़िंदगी। | ||
− | चार दिन की है कहानी, चार दिन का साथ है | + | चार दिन की है कहानी, चार दिन का साथ है |
सोच करके बस यही बाकी गुजारो ज़िंदगी। | सोच करके बस यही बाकी गुजारो ज़िंदगी। | ||
− | खुद में गूँगा हो के भी दरपन यही है बोलता | + | खुद में गूँगा हो के भी दरपन यही है बोलता |
और सुंदर और भी सुंदर सजाओ ज़िंदगी। | और सुंदर और भी सुंदर सजाओ ज़िंदगी। | ||
− | भाग्य का यह खेल है या खेल कुदरत का कहो | + | भाग्य का यह खेल है या खेल कुदरत का कहो |
जो भी है पर सत्य के नज़दीक लाओ ज़िंदगी। | जो भी है पर सत्य के नज़दीक लाओ ज़िंदगी। | ||
− | एक कांधे पे है सुख तो दूसरे कांधे पे दुख | + | एक कांधे पे है सुख तो दूसरे कांधे पे दुख |
रूठ जाये तो गले से फिर लगा लो ज़िंदगी। | रूठ जाये तो गले से फिर लगा लो ज़िंदगी। | ||
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17:05, 23 अगस्त 2017 के समय का अवतरण
जेा भी है जैसी भी है अपनी सँवारो ज़िंदगी
काटनी है जिंदगी तो हँस के काटो ज़िंदगी।
चार दिन की है कहानी, चार दिन का साथ है
सोच करके बस यही बाकी गुजारो ज़िंदगी।
खुद में गूँगा हो के भी दरपन यही है बोलता
और सुंदर और भी सुंदर सजाओ ज़िंदगी।
भाग्य का यह खेल है या खेल कुदरत का कहो
जो भी है पर सत्य के नज़दीक लाओ ज़िंदगी।
एक कांधे पे है सुख तो दूसरे कांधे पे दुख
रूठ जाये तो गले से फिर लगा लो ज़िंदगी।