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"रूप बदलकर एक टाँग पर खड़ा मगर है / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर

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बगुले की तालाब पे लेकिन बुरी नज़र है।
 
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मुँह में अपने आप निवाला आ जाता है,
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बड़ी सुरक्षित कुर्सी पर बैठा अजगर है।
 
बड़ी सुरक्षित कुर्सी पर बैठा अजगर है।
  
अंधे राजा के सब पहरेदार सो गये,
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प्रजा सजग है धोखे में दरबार मगर है।
 
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गाँव छोड़कर अपना मैं यह कहाँ आ गया,
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पुठपाथों पर जगह  नहीं सम्पन्न शहर है।
 
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मँहगाई की मार झेलता आम आदमी,
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मँहगाई की मार झेलता आम आदमी
 
बड़े लोग तो खुश हैं उन पर कहाँ असर है।
 
बड़े लोग तो खुश हैं उन पर कहाँ असर है।
 
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17:12, 23 अगस्त 2017 का अवतरण

रूप बदलकर एक टाँग पर खड़ा मगर है
बगुले की तालाब पे लेकिन बुरी नज़र है।

मुँह में अपने आप निवाला आ जाता है
बड़ी सुरक्षित कुर्सी पर बैठा अजगर है।

अंधे राजा के सब पहरेदार सो गये
प्रजा सजग है धोखे में दरबार मगर है।

गाँव छोड़कर अपना मैं यह कहाँ आ गया
पुठपाथों पर जगह नहीं सम्पन्न शहर है।

मँहगाई की मार झेलता आम आदमी
बड़े लोग तो खुश हैं उन पर कहाँ असर है।