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"जाड़े की सुबहें थीं, घूप के गलीचे थे / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर
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बचपन के ख़्वाबों में रेत के घरौंदे थे। | बचपन के ख़्वाबों में रेत के घरौंदे थे। | ||
− | सारा दिन हिर फिर कर तितलियाँ पकड़ते थे | + | सारा दिन हिर फिर कर तितलियाँ पकड़ते थे |
पंखों से नाजु़क वो नर्म-नर्म लम्हे थे। | पंखों से नाजु़क वो नर्म-नर्म लम्हे थे। | ||
− | बच्चों को टोलियाँ थीं, इमली के बूटे थे | + | बच्चों को टोलियाँ थीं, इमली के बूटे थे |
मिसरी से मीठे वो आम के बगीचे थे। | मिसरी से मीठे वो आम के बगीचे थे। | ||
− | सूरज की किरणों का ओढ़ना, बिछौना था | + | सूरज की किरणों का ओढ़ना, बिछौना था |
ममता का आँचल था, बापू के गमछे थे। | ममता का आँचल था, बापू के गमछे थे। | ||
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17:28, 23 अगस्त 2017 के समय का अवतरण
जाड़े की सुबहें थीं, घूप के गलीचे थे
बचपन के ख़्वाबों में रेत के घरौंदे थे।
सारा दिन हिर फिर कर तितलियाँ पकड़ते थे
पंखों से नाजु़क वो नर्म-नर्म लम्हे थे।
बच्चों को टोलियाँ थीं, इमली के बूटे थे
मिसरी से मीठे वो आम के बगीचे थे।
सूरज की किरणों का ओढ़ना, बिछौना था
ममता का आँचल था, बापू के गमछे थे।