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"बाग़ वही, बुलबुल भी वही मगर फ़साना बदल गया / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर
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− | बाग़ वही, बुलबुल भी वही मगर अफ़साना बदल | + | बाग़ वही, बुलबुल भी वही मगर अफ़साना बदल गया |
यार पुराना नये ज़माने से भी आगे निकल गया। | यार पुराना नये ज़माने से भी आगे निकल गया। | ||
− | दुनिया की तस्वीर बदलनें बड़े जुनूँ से निकला था | + | दुनिया की तस्वीर बदलनें बड़े जुनूँ से निकला था |
सीधा कुएँ में गिरता ये तो ठोकर खाकर सँभल गया। | सीधा कुएँ में गिरता ये तो ठोकर खाकर सँभल गया। | ||
− | मन में जितने भी गुबार हों सब मौसम के नाम करो | + | मन में जितने भी गुबार हों सब मौसम के नाम करो |
− | ठंडी - ठंडी हवा चली है पत्ता - पत्ता बदल गया। | + | ठंडी-ठंडी हवा चली है पत्ता-पत्ता बदल गया। |
− | बहुत मनाया मैंने लेकिन नहीं पसीजा पत्थर दिल | + | बहुत मनाया मैंने लेकिन नहीं पसीजा पत्थर दिल |
अपनी बारी आयी बनकर मोम का पुतला पिघल गया। | अपनी बारी आयी बनकर मोम का पुतला पिघल गया। | ||
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17:31, 23 अगस्त 2017 के समय का अवतरण
बाग़ वही, बुलबुल भी वही मगर अफ़साना बदल गया
यार पुराना नये ज़माने से भी आगे निकल गया।
दुनिया की तस्वीर बदलनें बड़े जुनूँ से निकला था
सीधा कुएँ में गिरता ये तो ठोकर खाकर सँभल गया।
मन में जितने भी गुबार हों सब मौसम के नाम करो
ठंडी-ठंडी हवा चली है पत्ता-पत्ता बदल गया।
बहुत मनाया मैंने लेकिन नहीं पसीजा पत्थर दिल
अपनी बारी आयी बनकर मोम का पुतला पिघल गया।