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"रूप बदलकर एक टाँग पर खड़ा मगर है / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर

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गाँव छोड़कर अपना मैं यह कहाँ आ गया
 
गाँव छोड़कर अपना मैं यह कहाँ आ गया
पुठपाथों पर जगह  नहीं सम्पन्न शहर है।
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फुटपाथों पर जगह  नहीं सम्पन्न शहर है।
  
 
मँहगाई की मार झेलता आम आदमी
 
मँहगाई की मार झेलता आम आदमी
 
बड़े लोग तो खुश हैं उन पर कहाँ असर है।
 
बड़े लोग तो खुश हैं उन पर कहाँ असर है।
 
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15:24, 24 अगस्त 2017 के समय का अवतरण

रूप बदलकर एक टाँग पर खड़ा मगर है
बगुले की तालाब पे लेकिन बुरी नज़र है।

मुँह में अपने आप निवाला आ जाता है
बड़ी सुरक्षित कुर्सी पर बैठा अजगर है।

अंधे राजा के सब पहरेदार सो गये
प्रजा सजग है धोखे में दरबार मगर है।

गाँव छोड़कर अपना मैं यह कहाँ आ गया
फुटपाथों पर जगह नहीं सम्पन्न शहर है।

मँहगाई की मार झेलता आम आदमी
बड़े लोग तो खुश हैं उन पर कहाँ असर है।