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"धूल मिट्टी की चमक कागज पे रखकर देखता है / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर
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गॅाव मेरा, शहर से दूरबीन लेकर देखता है। | गॅाव मेरा, शहर से दूरबीन लेकर देखता है। | ||
− | स्वाद सूखी रोटियों का, भात का होता है | + | स्वाद सूखी रोटियों का, भात का होता है कैसा |
चैम्बर में बैठकर वो जूस पीकर देखता है। | चैम्बर में बैठकर वो जूस पीकर देखता है। | ||
− | वो बड़ा नेता है उससे आप बच करके | + | वो बड़ा नेता है उससे आप बच करके ही रहिये |
वो दरो -दीवार तक कुर्सी को लेकर देखता है। | वो दरो -दीवार तक कुर्सी को लेकर देखता है। | ||
− | चार छै दस के | + | चार छै दस के अलावा कौन उसका साथ देगा |
किन्तु वो ख़ुद को ग़लतफ़हमी में रखकर देखता है। | किन्तु वो ख़ुद को ग़लतफ़हमी में रखकर देखता है। | ||
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आपके सारे घोटाले वो निरक्षर देखता है। | आपके सारे घोटाले वो निरक्षर देखता है। | ||
− | देवता बेशक़ नहीं, पर वो बड़ा इन्सान है, | + | देवता बेशक़ नहीं, पर वो बड़ा इन्सान तो है, |
हर किसी का दर्द जो अपना बनाकर देखता है। | हर किसी का दर्द जो अपना बनाकर देखता है। | ||
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15:47, 24 अगस्त 2017 के समय का अवतरण
धूल मिट्टी की चमक कागज पे रखकर देखता है
गॅाव मेरा, शहर से दूरबीन लेकर देखता है।
स्वाद सूखी रोटियों का, भात का होता है कैसा
चैम्बर में बैठकर वो जूस पीकर देखता है।
वो बड़ा नेता है उससे आप बच करके ही रहिये
वो दरो -दीवार तक कुर्सी को लेकर देखता है।
चार छै दस के अलावा कौन उसका साथ देगा
किन्तु वो ख़ुद को ग़लतफ़हमी में रखकर देखता है।
गाँव का वो आदमी बेशक अगूँठा छाप है, पर
आपके सारे घोटाले वो निरक्षर देखता है।
देवता बेशक़ नहीं, पर वो बड़ा इन्सान तो है,
हर किसी का दर्द जो अपना बनाकर देखता है।