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"अनुबन्ध / अर्चना कुमारी" के अवतरणों में अंतर

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22:01, 26 अगस्त 2017 के समय का अवतरण

अभिशप्त रहा है अतीत
वर्तमान के दोषारोपण के लिए

कदम-दर-कदम बढते हुए
भविष्य की ओर
पूर्वाग्रह, आलोचना हो जाती है
और आलोचना, समीक्षा

आत्मा की दिव्यता में
दृष्टि स्वस्थ होकर पुनरावृत्ति करती है
पुरातन अवलोकनों का

नव्यागत काल के कोरे कागज पर
लिखी जाती है
पुरानी कहानी, नये तेवर में
मिटाकर काली स्याहियों के धŽबे
रेखांकन का लाल रंग हरा हो जाता है

मन की आवृत्ति की धुन
गुनगुन शरद की धूप होकर
मुंडेर के कबूतरों के दाने में बदलकर
अहसास के पंख को परवाज़ देते हैं

समय ही बदलता है
समय के अर्थ
और बदलता है रंग भी
समय ही समय का

मेरे हिस्से के काले समय का
नया कलेवर
हरा रंग हो तुम
लाल होते हैं सदा
प्रेम के अनुबन्ध।